शहद कितना शुद्ध है? शहद के नाम पर आप क्या खरीद रहे हैं?
शहद की शुद्वता के लिए मशहूर 'फाबा' ब्रांड के मुकेश पाठक ने खोले राज । बताया, कैसे सोशल मीडिया से ग्राहकों तक पहुंचाई सच्चाई । कैसे अर्जित कर सके विश्वसनीयता।
बगैर किसी मिलावट का अच्छी गुणवत्ता वाला प्राकृतिक शहद लेना क्या आसान बात है?
नहीं !
बाजार में बड़े बड़े ब्रांड के और उनके तमाम लुभावने विज्ञापनों के बावजूद शुद्ध गुणकारी प्राकृतिक शहद मिल पाना आज असंभव सा लगता है !
ऐसेमें उत्तर प्रदेश के रामपुर निवासी तथा पेशे से कॉन्ट्रेक्टर रह चुके मुकेश पाठक का शहद ब्रांड फाबा (FABA) आज शहद की प्राकृतिक शुद्धता और स्वाद के लिए तेजीसे मशहूर हो रहा है!
ये कैसे संभव हो रहा है?
ग्राहकोंकी विश्वसनीयता अर्जित करने की ये ईमानदार यात्रा इतनी सफल रही, कि आज स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी उन्हे ट्विटर पर फॉलो करते हैं।
(इंडिया इनपुट डेस्क)
उत्तर प्रदेश के रामपुर में उद्यमी मुकेश पाठक ने आरंभिक दौर में ही शहद के उत्पादन में बड़ी कंपनियों की मौजूदगी में अपना ग्राहक वर्ग निर्माण कर उपलब्धि हासिल की है। Indiainput.com से उनकी बातचीत के अंश:
इस ब्रांड का आरंभ कैसे हुआ?
मुकेश जी के शब्दों में, – सन 2015 की बात है। मैने प्रधानमंत्री श्री मोदी को मधुमक्खी पालन संबंधी बात करते सुना। वे इसे बढ़ावा देना चाह रहे थे, देश में स्वीट रिवॉल्यूशन लाना चाह रहे थे। उनकी बातोंसे मानों मुझे प्रेरणा मिली, एक तरह का इग्निशन मिला।
मुझे लगा ये सही राह है, इसे अपनाना चाहिए। काफी सोचने के बाद 2016 में मैने अपने निर्णय पर कार्य शुरू कर दिया। मैने कुछ मधु मक्खी पालन अर्थात बी किपिंग करने वाले लोगोंको ढूंढा, उनसे जानकारी लेकर यह काम शुरू किया। आप जब नए काम में प्रत्यक्ष प्रारंभ करते हैं तब आप समस्याओंसे आमनेसामने होते हैं, उन्हें ठीक करने का काम भी आप करने लगते हैं।
मैने देखा कि बी कीपर्स की एक प्रमुख समस्या थी! वह यह कि बाजार में मांग होने के बावजूद, उनका शहद बिकता नहीं था। क्योंकि, योग्य दाम मिलने की समस्या थी।
शहद के नाम पर धोखाधड़ी ।
मुकेश पाठक बताते हैं, बड़ी कंपनियां बेहद कम दामोंमें कच्चा शहद खरीदना चाहतीं थीं । बेहद कम दामोंमें वे किसानोंका शहद खरीदने तैयार रहते थे। उनके कर्मचारियोंका कहना था कि चाहे आप कुछ मिलावट कर दो, हमें चलेगा, लेकिन सस्ता दो। लिहाजा, जब किसान शहद उत्पादन में खराब पद्धतियां अपनाता और समझौते कर सस्ते दामोंमे बेचता तो बड़ी कंपनियां सब माल ले लेती थीं । मुझे भी यही सलाह दी गई । मैने सोचा की बड़ी कंपनियोंके संचालकोंसे मिलकर उन्हें ये बताऊंगा तो शायद स्थितियाँ बदलेंगी। लेकिन, जब मैंने ये देखा कि कंपनियां इकोनॉमिक्स के खेल में एक किलो खरीदकर उसे दस किलो बना रही हैं, तो हैरान रह गया । कम्पनियों ने किसी वेंडर के जरिए चीन से राइस सिरप और कॉर्न सिरप बुलवाना और फिर उसे स्वयं ले कर मिक्स करना शुरू रखा था। स्वयं एफ एस एस आई ने वर्ष 2018 में नए नियमोंको तय किया जिस से शहद की गुणवत्ता नीचे आई । नए नए वैज्ञानिक तरीकोंसे शहद में वह मिलावट की जा रही है की पहचान पाना मुश्किल है। यह लोगोंके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है । सच तो ये है कि शहद एक ऐसी चीज है जो किसी कारखाने में कृत्रिम रूपसे नहीं बनाईं जा सकती। उसे सिर्फ मधुमक्खी बनाती है और मेरा मानना है कि हमें उसे वह समय देना होगा ।
बाजार में शहद के कई बडे बडे ब्रँड के उत्पादन हैं लेकिन उनकी शुद्धता के बारेमें क्या कहा जा सकता है ? – मुकेश पाठक सवाल करते हैं।
वे बताते है, कि हमारे रक्त के रासायनिक बनावट (केमिकल कम्पोजिशन) से शहद सबसे करीब है । यह रोग प्रतिकार क्षमता में वृद्धि करता है।
कोरोना काल में आयुष मंत्रालय शहद की एक राम बाण के रुप में अहमियत स्वीकार चुका है ।
लेकिन, बाजार से, किसी मॉल से, या किसी मेडिकल शॉप से खरीदे शहद को आप आयुर्वेदिक औषधि के तौरपर यदि इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इसमें परेशानी होगी ।
हम जिस लिए शहद लेते हैं वह कारण तो रहा दूर, हम बाजारके शहद के जरिए अधिक मात्रा में शक्कर ले रहे हैं जो हानिकारक है। हम अनगिनत काल से शहद प्राकृतिक तरीकेसे ले रहे हैं । मधुमख्खी के छत्ते से सीधे ग्राहक के पास । किसी प्रोसेसिंग की कभी आवश्यकता नहीं थी और ना आज है । शुद्ध शहद अर्थात प्योर हनी का अर्थ है रॉ हनी। कच्चा शहद । जैसे मधुमक्खी पालक छत्ते से निकाल लाता है। इसमें आज प्रोसेस्ड हनी कहाँसे आई है, क्यों लाई गई है? उसे क्यों गर्म किया जाता है? क्या वो नहीं जानते कि इस तरह शहद 45 से 60 डिग्री के ऊपर गर्म किए जाने पर अपने गुणधर्म खो देता है ?
अगर आप केवल अतिरिक्त मॉइश्चर निकालने हेतु कम तापमान में गर्म कर रहे हैं तो बात समझी जा सकती है और उसकी अनुमति दी जा सकती है क्योंकि यह नैतिक याने एथिकल है । लेकिन, उस से अधिक तापमान पर नहीं !
मेरा मन मुझे बाजार में चल रहा वह सब करने की स्वीकृति नहीं दे रहा था । मुझे समझ नहीं आ रहा था, कि क्या करें ? अपनी सोच बदलें या ये काम बदल दें? यह बंद कर कुछ और प्रयास करें? यदि अपनी सोच के अनुसार हम अच्छी गुणवत्ता वाला शुद्ध शहद बेचने निकलेंगे तो सवाल ये था कि खरीदेगा कौन ? स्थापित बड़ी कंपनियोंके के बड़े नाम और बिक्री तंत्र के सामने हमारी बात सुनेगा कौन ? बड़ी पशोपेश थी।
प्रधानमंत्री मोदी के वाक्य से बढ़ा हौसला ।
श्री मुकेश पाठक बताते हैं, कि मैं शहद के व्यवसाय को बंद करना चाह रहा था, तभी एक बार फिर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कहे एक वाक्य ने प्रभावित किया । मेरे मन का संबल और हौसला बढ़ाया ।
नोटबंदी के कदम के बारेमें एक जगह उन्होंने ये कहा कि “यदि नियत ठीक लगे तो लोग कठोर से कठोर निर्णय भी स्वीकार कर लेते हैं ।”
इसी वाक्य से मैने अपना विचार बदला और स्ट्रेटजी भी ।
अब मैंने सोशल मीडिया का उपयोग कर लोगोंको शहद की सच्चाई बतानी शुरू कर दी।
शहद के व्यापार में क्या हो रहा था, ग्राहक बड़ी कंपनियों के द्वारा बेचा गया जो शहद खरीद कर अपने घर ला रहें थे, बच्चो को दे रहे थे, स्वयं ले रहें थे – वो दरअसल क्या था, कैसे बना था ये मैने बताना शुरू कर दिया ।
बाजार के शहद की सच्चाई ।
श्री पाठक के शब्दोंमें, -वर्ष 2017 में मैने तय किया कि जनता को सच्चाई बताऊंगा और शेष फैसला इनपर छोड़ दूंगा । मैने ये बताना शुरू किया, कि देखिए, हर जमा शहद नकली नहीं होता । उसी प्रकार हर प्रवाही या लिक्विड शहदभी असली नहीं होता । बड़ी कंपनियों द्वारा बेचा जा रहा शहद हर बार एक जैसा होता है । लेकिन प्रकृति का सच तो यह है, कि फूल बदलेगा तो शहद भी बदलेगा । बदलना चाहिए भी । अजवाइन का शहद थोड़ा कसैला हो सकता है। लीची फल का शहद अतिरिक्त मीठा हो सकता है। कई तरह के पौधों का जैसे सिसम, कढ़ी पत्ता आदी का शहद थोड़ा खट्टापन लिए हो सकता है।
यदि शहद का रंग, गाढ़ापन और स्वाद हर बार एक जैसा नहीं है तो ये ज्यादा स्वाभाविक रूप से है । सिंगल फ्लोरा याने एक तरह के फूल वाला शहद ! मल्टी फ्लोरा अर्थात अलग अलग पौधोंका शहद ! अलग फूलों से प्राकृतिक रूप से बने शहद उनके रंग, गाढ़ापन और स्वाद में अलग अलग होते हैं । वही उनकी पहचान है और शुद्धता भी । लेकिन, प्रकृति के ठीक विपरीत, बाजार में एक कंपनी के एक जैसे रंग, गाढ़ापन और स्वाद वाला शहद उपलब्ध है। प्राकृतिक शहद या बड़ी कंपनियों के प्रॉडक्टस -आप किसे चुनेंगे ?
शुद्धता के बारेमें सच्चाई जानने पर भी लोग कहते, कि हम क्या करें, हमारे सामने क्या कोई पर्याय है?
मैने सोशल मीडिया पर लोगोंसे पूछा कि यदि आपको खरीदा हुआ दूध नकली लगे तो भी क्या आप वही दूध खरीदते रहेंगे? या कोई अन्य पर्याय ढूंढेंगे? किसी और स्थान से लेंगे ? आपको अच्छा शहद ढूंढने कहीं नहीं जाना । बेहतर पर्याय हम देते हैं, हम आपको शुद्ध शहद देंगे । बस आपको तय करना है, कि आप अपने और परिवार के स्वास्थ्य से कितने हद तक समझौता कर सकते हैं ?
हमने एक किलो का एक ही तरह का शहद देने के बजाय ढाई सौ ग्राम के चार पैक में अलग अलग शहद देना आरंभ कर दिया। लोगों ने इसे समझा । पत्रिकाओं ने टेस्ट लिया । काफी लोगोंको बचपन में जंगल से लाए गए शुद्ध शहद का स्वाद याद आ गया । जनता में जैसे जैसे जागृति आई, बी कीपर्स भी अपना काम अच्छी तरह से करने लगे, गुड प्रैक्टिसेस स्वीकारने लगे । बाजार जागने लगा ।
सोशल मीडिया का लाभ
मुकेश पाठक जनता में जागृति लाने के लिए सोशल मिडिया की भूमिका पर जोर देकर कहते हैं कि सोशल मीडिया एक बेहतरीन लोकतांत्रिक माध्यम है । जिसे अच्छा अनुभव आएगा वो सोशल मीडिया पर उसे अच्छा बताएगा । जिन्हे बुरा अनुभव आया वो अपना अनुभव साझा करेगा । लेकिन, इसके जरिए आप अपनी बात लोगोंतक पहुंचा सकते हैं ।
आज फाबा हनी के पास अपना एकनिष्ठ ग्राहक संग्रह (loyal customer base) है जिसके चलते सोशल मीडिया पर वह चर्चा में है। यह भी देखा गया है, कि शहद के विषय में कोई प्रतिकूल या सवालिया पोस्ट या कमेंट पर इस ब्रांड के ग्राहक स्वयं जवाब पोस्ट कर फाबा के उत्पाद का प्रमोशन करने लगते हैं। श्री पाठक इसे पब्लिक अवेयरनेस से आई जागृति का परिणाम बताते हैं।
वे बताते हैं कि व्हाट्सएप के जरिए अब तक पंद्रह हजार ग्राहक सीधे फाबा से जुड़े हैं। वो अपना नाम पता देते हैं। हम लिंक भेजने पर वे भुगतान करते हैं और अच्छा पैक किया गया शुद्धतम उत्पाद उनके पते पर पहुंच जाता है। उन्हे अच्छा अनुभव मिल रहा है। उनके द्वारा यह अच्छा अनुभव साझा करने से (बाई वर्ड ऑफ़ माउथ) हमारे ब्रांड का प्रमोशन स्वयं हो रहा है । फाबा हनी शहद की शुद्धता को लेकर अपनी पहचान बनाता जा रहा है।
मुकेश जी कहते हैं, रोशनी के बढ़ने से अंधेरा छंटने लगता है। आज हमारे प्रयासोंसे किसानोंको अच्छे दाम मिल रहे हैं और लोगोंको रोजगार उपलब्ध हुआ है। हमारी नियत अच्छी है, लिहाजा, लोग हमारे प्रयास को स्वीकार कर रहे हैं।