उस सोच और भावना ने बचाया भोजपुरी लोकगीतों का खजाना!
एक ऐसी बेटी जिसने अपनी माँ की याद में भोजपुरी लोक के गीत संस्कार को लुप्त होने से बचाया!!
एक अनोखी श्रद्धांजलि!! किसी साहित्य, कला प्रेमी के स्मरण में वाकई, इस से बेहतर श्रद्धांजलि क्या हो सकती है?
हमारी ऑनलाईन त्रिभाषी पत्रिका ‘इंडिया इनपुट’ ने हमेशा हर क्षेत्र में जारी अनोखे, सकारात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित किया है। इसी दिशा में एक और कदम।
आइये, आपको मिलाते हैं, एक ऐसी बेटी से, जिसने अपनी माँ की याद में, लुप्त होते भोजपुरी लोकगीत तथा कहानियों को बचा लिया।
डॉ. नम्रता मिश्रा तिवारी
जब भी भोजपुरी लोक गीतों का उल्लेख होता है तो जो कुछ आम भारतीय को स्मरण होता है, उसके पीछे जिम्मेदार कौन है इस पर यहाँ चर्चा नहीं हो रही। क्योंकि, ये चर्चा निरर्थक है। क्योंकि, वास्तव में उस से काफी भिन्न, गहन और विशाल है भोजपुरी लोक गीतोंकी संस्कृति जो पीढ़ियों द्वारा रचित, संग्रहित, सिंचित की गई है।
बात करते हैं, एक अनोखे श्रद्धांजलि स्वरुप अभियान की जिसके द्वारा भोजपुरी लोकगीतों का पीढ़ियों से चलते आ रहे ख़जाने के जतन, संवर्धन कार्य किया जा रहा है। एक साक्षात्कार, सुश्री शची मिश्र जी से..
इंडिया इनपुट: आपने भोजपुरी पारिवारिक प्रसंगों के लोक गीतों को लुप्त होने से बचाया है, आपको इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली, आपके इस सफर की शुरूआत कैसे हुई?
शची मिश्र: मेरा जन्म एक भोजपुरी भाषी परिवार में हुआ और मैंने अपनी बोलचाल के माध्यम रूप में इसी बोली को जाना। मेरी बोली मेरी छोटी सी दुनिया की सारी आवश्यकताओं को पूरी करने में समर्थ थी। इसी बोली के माध्यम से मैंने अपने रिश्ते नातों को पहचाना, खान – पान, रीति -रिवाजों, त्योहारों – परंपराओं उनसे जुड़ी मान्यताओं और लोक की कथाओं और लोक विश्वासों को जाना और जीया। वे सब आज तक मेरे मानस पटल पर अंकित हैं और उसे मैं अपनी अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर रही हूँ।
इंडिया इनपुट: आपका परिचय, आपके परिवार की इसमे भागीदारी?
शची मिश्र: मेरी अम्मा नौ अगस्त दो हजार तेरह को छियासी वर्ष की आयु में पूर्ण हो गयीं। अम्मा का गला सुरीला था, ईश्वर ने उन्हें गीत कंठस्थ करने की अद्भुत क्षमता दी थी और जब वे संस्कारों और त्योहारों में लहक कर गाती थीं तो उनके समक्ष एक दो महिलाएँ ही ठहर पाती थीं। अम्मा कहती थी कि, अगर राह चलते भी वे कोई गाना सुन लेती तो वह उन्हें याद हो जाता ऐसी अद्भुत क्षमता और वैसा ही गाने के प्रति आकर्षण। इस समय मुझे सब कुछ जीता जागता दिखाई दे रहा है। घर और रिश्तेदारियों में होने वाले मण्डल, जनेऊ और विवाह के अवसर पर अम्मा ढोलक को कस कर, डोरी घुटने में फँसा कर जब ढोलक पर थाप मारती तो पूरा घर गुलजार हो जाता था।
मुझे गीत गाना नही आता था इस कारण गाने के बोल में भी मेरी रुचि नहीं थी पर अम्मा के जाने के बाद मुझे लगा कि सिर्फ मेरी अम्मा का जीवन ही नहीं पूर्ण हुआ है वरन एक सुरीला युग भी पूरा हो गया। अम्मा के पास अपने लिखे गानों की कापियाँ थी, उन कॉपियों में बहुत सारे गीत थे पर उनके गीत संपदा का अधिकांश भाग मौखिक था और उनके साथ उनके साथ बहुत से मौखिक गीत काल के मुँह में समा गए। एकाध गीतों के टुकड़ों को लेकर भाभियों से पूछा पर किसी को भी वे गीत याद नहीं, यहाँ तक कि धुँधली स्मृति भी नहीं है। अब उन गीतों को एकत्र करना लगभग असंभव है और आज मैं पछताती हूँ कि मैंने उन गीतों को समय पर क्यों नहीं एकत्र किया?
इस पछतावे के साथ आरंभ हुआ अम्मा द्वारा गाए गए गीतों का संकलन। चूँकि उन गीतों का अधिकांश भाग मौखिक था अतः उसे और समृद्ध बनाने के लिए चाची ताई मामी आदि के परिवारों का सहारा लिया। तब तक मैंने टाइपिंग की तमाम दुष्वारियों के चलते लैपटॉप पर टाइप करना आरंभ कर दिया था! कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि ‘गूगल’ पर भी खोजो। वहाँ पर भोजपुरी गीतों के रूप में जो अश्लील और घृणित वीडियो दिखाई दिए उनकी चर्चा करना व्यर्थ है।
इंडिया इनपुट: कैसी कठिनाइयां आपके सामने आयी और कैसे आपने उनका सामना किया?
शची मिश्र: मैंने व्यक्तिगत रूप से लोगों से उनकी पास संग्रहीत पुरानी कॉपियाँ माँगनी आरंभ की और मुझे संबंधियों ने उत्साह से वे कॉपियाँ दी। चूकि मैं स्वयं टाइप करती थी इसलिए प्राप्त गीतों को विभिन्न शीर्षकों की फाइल के अंतर्गत एकत्र करना आरंभ कर दिया। मैंने सबसे पहले संस्कार गीतों के संकलन को तैयार करने का निश्चय किया क्योंकि घरों में इन गीतों की आवश्यकता जन्म से लेकर विवाह तक सभी अवसरों पर पड़ती है। संस्कार गीत लोक का मंत्र है। महिलाएँ शिशु के जन्म, अन्नप्राशन , मुण्डन आदि संस्कार को गीतों के मध्यम से पूरा कर लेती है और लोक में इस प्रकार से पूरे किए गए संस्कारों की मान्यता भी है। इस प्रकार से संस्कार गीतों का संकलन ‘गितियन खनके अँगनवाँ’ संकलन पूरा हुआ औ उसे गोरखपुर के ही एक स्थानीय प्रकाशक ने छापा।
इस संकलन पर कार्य कते हुए मन में प्रश्न उठा कि हमारे समाज में भोजपुरी भाषी मुसलमान भी हैं, बिना उनके संस्कारों के गीतों को समेटे यह कार्य अधूरा है और तब प्रयास आरंभ हुआ मुसलमानों के संस्कारों के विषय में जानने व उनसे संबंधित गीत एकत्र करने का। इस प्रयास में मुझे बहुत कठिनाई आयी। मैंने विश्विद्यालय में लोक साहित्य के आचार्यों से इस विषय में चर्चा की किन्तु आश्चर्य उन्होंने कभी इस नजरिए से सोचा भी नहीं था और न ही कोई सामग्री की उपलब्धता के बारे में जानकारी दे सकें। व्यक्तिगत स्तर पर जितना मिला उसको मिला कर मैने हिन्दू और मुस्लिम दोनों के ही संस्कार गीतों का संकलन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने छापा।
चूँकि, मैंने आरंभ से ही अलग अलग फाइल बनाना आरंभ कर दिया था.. इसलिए, समय समय पर ‘भोजपुरी के ऋतुगीत’, ‘भोजपुरी के प्रणय गीत नकटा’ गीतों के साथ साथ मैंने ‘भोजपुरी की लोक कथाओं’ का भी संकलन संपादन किया और वे सभी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। टेलीविजन पर राम मंदिर के भूमि पूजन का प्रसारण देखते समय मन में विचार आया कि लोक में राम के जीवन से संबंधित परंपरा से अलग कुछ अलग मान्यताओं और घटनाओं से संबंधित गीत मिलते हैं क्यों न उनके आधार पर ‘लोक रामायण’ का संकलन किया जाए और इस प्रकार से यह सात काण्डों में विभाजित रचना का प्रकाशन हुआ। इस तरह से अम्मा की श्रद्धांजलि स्वरूप आरंभ हुई लोक गीतों और कथाओं की यह यात्रा यहाँ तक पहुँची।
भले ही आज ये गीत और कहानियाँ अपनी वाचिक परंपरा में नष्ट हो चुके हैं पर गीतों और कथाओं की एक कभी नष्ट न होने वाली परंपरा है, उन्हीं गीतों और कथाओं से नए कलेवर और भाषा के साथ नए गीत और कथाएँ जन्म लेती रहती हैं। आज महिलाएँ और लड़कियाँ नए हल्के फुल्के गीतों को गा रही हैं, कारण कि उनके पास पारंपरिक गीत नहीं हैं, इसलिए भी मुझे इस नष्ट होती धरोहर को सँभालना आवश्यक लगा।
इंडिया इनपुट: क्या आप किसी संस्थान से भी जुड़ी हुई हैं?
शची मिश्र: मैं पुणे रह रही हूँ और यहाँ रहते हुए किसी संस्था से नहीं जुड़ पायी, मेरी संस्था मेरा पूरा समाज है उसी से मुझे सहयोग भी मिलता रहा। भविष्य के लिए क्या कह सकती हूँ जो भी विषय मेरे मन को छूएगा उस पर अवश्य कार्य करूँगी।
इंडिया इनपुट: हाल ही में महिला दिन मनाया गया. हालाकि व्यावसायिक कार्य में करियर करते हुए, घर में और बाहर सक्रिय रहते हुए महिलाओ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, आज़ महिलाओं को इस से स्ट्रेस होता है! आपने कैसे इनका सामना किया. आज की महिलाओं को आप क्या सुझाव देंगी?
शची मिश्र: आपने महिला दिवस के विषय में पूछा है, कि मैंने घरेलू जिम्मेदारियों और लेखन में कैसे सामंजस्य बनाया, तो जहाँ चाह होती है वहाँ राह निकल ही आती है! यह मेरा शौक है और इंसान अपना शौक पूरा करने के लिए समय और मार्ग निकाल ही लेता है।
महिला दिवस के संदर्भ में मैं एक बात कहना जरूरी समझती हूँ कि महिलाओं के लिए गाए जाने वाले गीत विशेष करके संतान के जन्म पर गाए जाने वाला ‘सोहर’ और कन्या विवाह के गीत अपने आप में पूरा स्त्री विमर्ष हैं। विश्व में भले ही वर्ष में एक दिन महिला दिवस मनाया जाता है पर हमारे लोक में स्त्री विमर्ष से संबंधित अवसर साल में अनेक बार आते हैं।
इंडिया इनपुट: क्या हमारे पाठक जान सकते हैं, कि आपको अभी तक कितने पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
शची मिश्र: पुरस्कारों, सम्मानों की संख्या किसी लेखक का मापदण्ड नहीं होती है फिर भी ये कह सकते हैं, कि अब तक मुझे पाँच सम्मान प्राप्त हो चुके हैं-
(1) हिन्दी साहित्य शिरोमणि – साहित्य मण्डल, नाथद्वारा, राजस्थान।
(2) साहित्य भूषण सम्मान- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ।
(3) अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मान – हिन्दी अकादमी मंबई एवं कथा युके द्वारा, लंदन।
(4) साहित्य भूषण सम्मान – हिन्दी अकादमी मुम्बई।
(5) फणीश्वर नाथ रेणु पुरस्कार – महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार, मुंबई।
सम्पादकीय नोट: भोजपुरी लोकगीतों का संग्रह बढ़ाने के कार्य में आप भी सहयोग देना चाहते हों, तो अवश्य संपर्क कर सकते हैं।
संपर्क:
शची मिश्र, पुणे।
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(All images: Mrs. Shachi Mishra, Pune)