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राजस्थान के दो सूखे जिलोंका जलस्तर कैसे बढ़ा!

'अपना संस्थान' का अभियान अब पहुंचा राजस्थान के पन्द्रह जिलों में।

राजस्थान के सूखे इलाकोमें जलस्तर कैसे बढा, देखिए! भीलवाड़ा में २०१७ तक प्रतिदिन बिसलपुर से एक पानी की ट्रेन आती थी। चार दिनोंमें आधे घंटे के लिए एक बार नल से पानी आपूर्ति होती थी। अर्थात, पिने के लिए भी पानी आपूर्ति पर्याप्त नहीं थी। स्वयंसेवक तथा अन्य नागरिकोंकी मेहनत से २०१७ के बाद हालात इतने तेजी से बदले हैं, कि आज भी लोगों को यह चमत्कार लगता है।  

इंडिया इनपुट डेस्क।

राजस्थान अर्थात सूखा प्रदेश, ऊँट की यात्रा और रेत के टीले। किन्तु अब यह स्थिती बदल रही है। राजस्थान के ‘सबसे डार्क ज़ोन’ कहलाए जानेवाला भीलवाड़ा  में जहां २०१६ तक भूगर्भ का जलस्तर लगभग डेढ़ सौ फ़ीट हुआ करता था, आज पानी पांच फ़ीट पर आ चुका है। डूँगरपुर में भी यही सफलता दोहराई गई ।  कैसे संभव हुआ यह, आइये पढ़ें ‘अपना संस्थान’ के विनोद मेलाना जी की indiainput.com से बातचीत के कुछ अंश  :

पर्यावरण के क्षेत्र में २०१० से मेरी सक्रियता बढ़ी थी।  हमने ‘पर्यावरण संवर्धन संस्थान’ की २०१३ में स्थापना की।  मन में प्रेरणा थी एक संकल्प की।  अपनी आयु में कम से कम एक लाख पेड़ लगाना।  मन में काफी पहले से ये विचार था।  मैं भीलवाड़ा से ही हूँ जो राजस्थान का सबसे डार्क ज़ोन माना जाता रहा है।

हम सब सहयोगियोने मिलकर  वर्ष २०१० तक करीब एक हजार पेड़ लगाए थे ।  लेकिन, २०१३ में हमने पुनः आरम्भ किया और अब तक भीलवाड़ा शहर और आसपास दो लाख पौधे लगा चुके हैं। उसी दौरान २०१६ में हम स्वयंसेवकोंकी क्षेत्र की टोली ने  किशनगढ़, जिला अजमेर में चर्चा की और इस तरह अमृतादेवी पर्यावरण नागरिक संस्थान अर्थात ‘अपना संस्थान’ का उदय हुआ।  केवल पांच वर्ष हुए हैं। हम अपने अन्य साथियोंके सहयोग से पूरे राजस्थान के अलग अलग क्षेत्रों में कुल २० लाख पौधे लगा चुके हैं।  हमारे कार्य को आज  विशाल स्वरुप मिल चुका है।

पंछीयोंके लिए ताजा पेयजल उपलब्ध हो इसकेलिए करीब डेढ़ लाख पानी के पात्र टांगने या लगाने का कार्य पूरे राजस्थान में हुआ। उतने ही पक्षीघर लगाए गए।

हमने पर्यावरण विशेषज्ञोंके साथ तीन महत्वपूर्ण वार्षिक गोष्ठियाँ आयोजित की थीं। उदयपुर, जोधपुर और भीलवाड़ा में। इन गोष्ठियोंके दौरान हमें विशेषज्ञोंकी ओर से महत्वपूर्ण सुझाव और इनपुट्स मिले। सबसे अहम् बात यह सामने आई थी कि पेड़ोंकी अंधाधुंध कटाई के बाद में जो कहीं सरकारी वृक्षारोपण हुए उनमें भी फलदार पेड़ लगभग दुर्लक्षित ही रहे।  शहरोंको शोभायमान दिखाने के चक्कर में डेकोरेटिव्ह फ़ूलोंवाले पेड़ लगाए जाते रहे थे।   इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम हुआ पंछीयोंपर।  यह जानकारी दुखदायी थी, कि शहरोंमें अस्सी प्रतिशत  फल भक्षी पक्षी समाप्त हो गए।  अधिकतर कीटभक्षी पक्षी ही दिखायी दे रहे थे। कई पक्षी अधिकतर पांच किलोमीटर की परिधी में उड़ सकते हैं।  सबसे अधिक   वे प्रभावित हुए थे। हमने एक्सपर्ट्स की राय को केन्द्रीभूत रख कर यह तय किया, कि हमारे कार्यक्रम में कम से कम बीस प्रतिशत पौधे फलदार लगाए जाएँगे। वही किया।  सीताफल, बिल्व, आम,बेर, अमरुद, जामुन, चीकू और शहतूत भी लगाए। कल्पना यह भी थी, कि   बाहर से कोई आर्थिक रूप से प्रतिकूल परिस्थिती में शहर में आए भी तो उसे हमारे उद्यान या सडकोंसे कुछ मिल सके और हमारा वृक्षारोपण उसके भी काम आये।

राजस्थान में जलसंवर्धन कार्यक्रम से जलस्तर बढ़ने लगा।

राजस्थान

 

पर्यावरण गतिविधी के तहत हमने बोरिंग ट्यूब वेल हो साधारण कुएँ हों या बड़ी बावड़ियाँ  सब के साथ वॉटर कंज़र्वेशन का काम व्यापक स्तर पर शुरू किया।  वर्ष २००२  में भीलवाड़ा का जलस्तर १४०  फीट से २५० फीट था। २०१७ तक भीलवाड़ा में प्रतिदिन बिसलपुर से एक पानी की ट्रेन आती थी। चार दिनोंमें आधे घंटे के लिए एक बार नल से पानी आपूर्ति होती थी।  अर्थात, पिने के लिए भी पानी आपूर्ति पर्याप्त नहीं थी।  २०१७ में दस पंद्रह फ़ीट पर पानी आया तो बाकी जनता के साथ हमें भी आश्चर्य हुआ। लेकिन ऐसा हो रहा था। २०१९ में भीलवाड़ा में कई जगह भूगर्भ के पानी का स्तर ५ फ़ीट या एक मीटर तक आया। आज भी वह देखा जा सकता है।  नब्बे प्रतिशत  बेसमेंट में पानी आ गया। एक उदाहरण भीलवाड़ा के रामस्नेही चिकित्सालय अस्पताल के परिसर का दिया जा सकता है। वर्ष २०१०  तक रामस्नेही चिकित्सालय में प्रतिदिन ३०-३५  पानी के टैंकर आते थे। वर्षा काल में  एक लाख वर्ग फ़ीट छत का पानी रोक कर सीधे बावड़ी में जाने की व्यवस्था की।  उसे व्यर्थ बह जाने से रोका।  वहाँ अब पानी के टैंकर की आवश्यकता नहीं रही।  टैंकर्स नहीं लाना पड़ता। पंचमुखी हनुमान मंदिर परिसरमें दस बीघा तालाब है।  वर्षा का पानी बह जाता था।  उसे एक कुएँ से जोड़ दिया। हमारे इलाकेमें खारा पानी था।  जमीन  खराब हो चुकी है। किन्तु अब यहां भी जलस्तर बढ़ा है।

प्रतापगढ़ की चैनकुंड बावड़ी का भी उदाहरण देखा जा सकता है। वर्ष २०१७ में डूँगरपुर नगरपरिषद के अध्यक्ष श्री के के गुप्ता ने हमारा काम देखा और उनके समर्थन से हम एक वर्ष में २६५  कुँआ स्थानोंपर जलसंवर्धन कार्य कर पाए।  हर स्थानपर सोलह हजार रुपयोंका खर्च था।   स्थानिक व्यक्ति और नगर परिषद् ने खर्च आधा आधा बाँट लिया। डूंगरपुर में २६५ घरोंमें और सरकारी संस्थानोंमें जल संरक्षण किया गया।  वहाँ जो एक वर्ष में चमत्कार हुआ वह आज भी कोई भूल नहीं सका है।

राजस्थान

एक ही वर्ष में जल स्तर में बीस फ़ीट की बढ़त दिखी ।  उसे ही मिडिया और लोगोने ‘डूँगरपुर पैटर्न’ नाम दे दिया।

अब दिल्ली सरकार डुँगरपुर नगर परिषद के सहयोग से वह पैटर्न दिल्ली में लागू करना चाहती है।

जलस्तर भीलवाड़ा, डूंगरपुर जिलों में बढ़ा है । अब स्वयंसेवक और अन्य साथी राजस्थान के पन्द्रह जिलों में कार्य प्रारंभ कर चुके हैं।

हमारे जलसंवर्धन अभियान को कई मंत्री, गणमान्य अतिथी, विद्वतजन  एवं विशेषज्ञ स्वयं आकर देख चुके हैं। हमारे साथियोंद्वारा राजस्थान के करीब पंद्रह जिलोंमें जलस्तर बढ़ाने का कार्य यशस्वी हुआ है।  इस तरह के अभियान देश भरमें जल स्तर बढानेमें सहायक सिद्ध हो सकते हैं, यह पूर्ण विश्वास है।

 (वाणिज्य में स्नातक श्री विनोद मेलाना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्योंसे जुड़े रहे हैं। वे पूर्णकालिक प्रचारक भी रहे हैं। श्री राजीव दीक्षित द्वारा चलाया गया ‘आजादी बचाओ आंदोलन’, श्री अन्ना  हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन  तथा स्वामी रामदेव की अगुवाई वाले आंदोलन इन देशहित के आन्दोलनोंमें सक्रीय सहभाग ले चुके हैं। )    

Editor India Input

I am a senior journalist. Have reported and edited in print, tv & web, in English, Hindi & Marathi for almost three decades. Passionate about extraordinary positive works by people like you and me.

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