हिन्दी
Trending

ढाबा संचालक जिसका नाम प्रधानमंत्री श्री मोदी ने लिया!

२०१६ में 'मन की बात' में श्री नरेंद्र मोदी ने उस ढाबा संचालक के सेवा कार्यों की प्रशंसा की थी। इसका असर कुछ यूँ हुआ, कि वह ढाबा 'इंसानियत का मंदिर' बन गया।

ढाबा संचालक जिसने इन्सानियत का आदर्श प्रस्तुत किया! नोटबंदी, कोरोना महामारी, लॉकडाऊन के दौरान जरूरतमंद राहगीरोंको निःशुल्क खाना। अनाथ बच्चों को आर्थिक सहायता देकर उनके भविष्य की जिम्मेदारी उठाना।  किसान परिवार की बेटियों की अपने हॉल में अपने खर्च से शादियाँ करवाना और शादी में आए मेहमानोंको भोजन निःशुल्क देना। दुर्घटनाग्रस्त लोगोंकी निःशुल्क प्राथमिक चिकित्सा और अस्पताल ले जाने की सेवा भी । यह सब महाराष्ट्र के एक ढाबे में होता है। और, यह सब कुछ अकेले आरम्भ करनेवाले श्री मुरलीधर राउत कहते हैं, ‘मैं जब भी अच्छे काम का श्रीगणेशा करता हूँ, समाज फौरन मेरा काम बांटने साथ आ जाता है।’

संजय रमाकांत तिवारी

उनका नाम है, मुरलीधर राउत। उम्र ४५ वर्ष।  एक साधारण किसान  व्यक्ति ।  अकोला जिलेके बालापुर के नकद एक गाँव से । पंद्रह वर्षों से उनकी अपनी भूमि पर ढाबा चलाते हैं।

मुंबई कोलकाता हाइवे (पुराना नेशनल हाइवे नंबर छः) पर  विदर्भ के अकोला में बालापुर के पास  आपको ‘होटल मराठा’  का बोर्ड दिखेगा। यह भी संभव है, कि आपको यहाँ कोई न कोई जरूरतमंद व्यक्ति या परिवार अन्न ग्रहण करते मिल जाएंगे।

इस  सामान्य दिखने वाले ढाबे की दरियादिली की प्रशंसा स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने २७ नवंबर २०१६ के दिन अपने रेडिओ सम्बोधन ‘मन की बात’ में की थी।

ढाबा संचालक से सेलिब्रिटी कैसे बने

मुरलीधर बताते हैं, ‘८ नवंबर २०१६ की शाम नोटबंदी की घोषणा हुयी। एक हज़ार और पांच सौ रुपयोंके नोट चलन में नहीं रहेंगे यह सब को पता चला।  लेकिन, नोटोंके बारे में कई आम नागरिकोंको स्पष्टता नहीं थी। कई स्थानों पर ये  नोट स्वीकारना बंद हो चुका था। दूसरे दिन दोपहर बारह बजे की  बात होगी।  मैं ढाबे में काउंटर पर बैठा था। इतने में एक परिवार आया।  पती, पत्नी , छह वर्ष का बेटा और चार वर्ष की बच्ची। वे काउंटर पर आए और बताया   कि उन्हें खाना चाहिए लेकिन, उनके पास बंद हो चुके पाँच सौ की नोट थी। मैंने देखा, कि बच्चोंको भूख लगी थी। सो, मैंने  उनसे निवेदन किया, कि ‘आप सब  खाना खाकर संतुष्ट हो जाएँ, नोट की बाद में सोचते हैं।’

 

‘खाने का  बील कुछ  साढ़े तीन सौ रुपये हुआ था। वो मेरे पास आये और पांच सौ की नोट लेने का आग्रह करने लगे। मैंने कहा, ‘आप अगली बार आओगे तो देना।’  जब उन्होंने एक न सुनी तो मैंने वह नोट लेकर उसके छुट्टे उन्हें थमा दिए।  उन्हें स्मरण दिलाया, कि उनका गंतव्य स्थान पुणे अभी बारह घंटे दूर है।  उनके साथ बच्चे हैं सो उन्हें इन रुपयों की आवश्यकता होगी। जाते समय मैंने उनकी आँखोंमें नमीं देखी। उस दौरान, राह चलते   ट्रक चालक, क्लीनर, आम राहगिर सबको पुराने नोटोंकी समस्या थी।’

ढाबा संचालक
होटल के बाहर बोर्ड, २०१६

‘मैंने होटल के बाहर बोर्ड लगवाया, कि ‘यदि आपके पास पुराने नोट हैं और आप यदि खाना खाना  चाहते  हैं, तो रुपयोंकी चिंता छोड़ें और खाना खाएं।  आगे जब भी मौका मिले और आप दोबारा इस रास्ते से आयेंगे, तब रूपए चुकता कर सकते  हैं।’

‘हम लगातार एक महीने यह काम करते रहे। जब तक नए नोट आये, तब तक। हज़ारो लोग उस दौरान आकर खाना खाकर गए। कई लोग बाद में आकर पैसे दे गए। मैंने किसी का कोई हिसाब थोड़े ही रखा था। कभी कोई आते,  खाना खाते, लेकिन, बिल देते समय ज्यादा रुपये देकर कहते -ये पिछली बार जब पुराने नोट थे तब की उधारी है।’ और चले जाते। अगले दो तीन साल तक यह  सिलसिला चलता रहा ।  मैंने कोई गिनती नहीं की थी।  मेरे पास कोई हिसाब नहीं रखा था। लेकिन प्रती दिन कम से कम सौ लोगोंकी औसत लें और प्रती व्यक्ति कम से कम सौ रुपये का खर्च पकड़ें तब भी तीन- साढ़े तीन लाख होते हैं। फिर, मिडिया के लोग आये और उन्होंने खबर चलाई। फिर ‘मन की बात’ में प्रधान मंत्रीजी ने नाम लिया। लोग बात करने लगे।  मैंने तो ये सब सोचा तक ना था।’

‘मैंने इन्हीं लोगोंकी सेवा करके रुपये कमाए थे।  आज जब उन्हें मुश्किल आ रही थी तो उन्हें मदद  करना मेरा कर्तव्य बनता था।  उस दौरान मेरे होटल में दुगनी संख्या में लोग आते थे। उनके चेहरे पर समाधान और तृप्ति देख कर मुझे संतोष मिलता।  मैंने  मेरे पिता से यही सीखा था। हमसे जितना सम्भव हो सके, लोगोंकी और समाज की सेवा करना। मेरे पिता भी यह काम देख कर खुश थे। जब मैंने शुरुआत की तो मेरे गाँव के किसान और अन्य लोग स्वयं आगे आकर  मेरी मदद करने लगे थे।  जब प्रधान मंत्रीजी ने हमारे प्रयासोंकी सराहना की तो हौसला बढ़ गया।  लेकिन एक बात और समझ में आई। मेरी जिम्मेदारी अब बढ़ गई थी। मुझे उसपर खरा उतरना  था।’

कोरोना महामारी
ढाबा संचालक
‘कोरोना महामारी में भी ऐसा हुआ। २४ मार्च २०२०  को लॉकडाऊन की घोषणा हुई । मजदूर लोग  घबरा कर अपने गॉंव वापिस चल पड़े।  काफी लोग पैदल ही चल पड़े थे। जथ्थे से लोग भूखे प्यासे निकल पड़े थे। कई पेट्रोल पम्प वालोंने पानी की सुविधा  बंद कर दी थी – कोरोना के डर से। तो हमने हमारी जिम्मेदारी पूरी करने की सोची। हाई वे के सामने बड़ा मंडप डाल दिया।  बोर्ड लगा दिया। वहाँ खाना, चाय, नाश्ता सब रखवा दिया। गाँव के हमारे लोग सब साथ थे। यहाँ भी  समाज साथ आया।  पहले दिन मैंने अकेले ने खर्च किया था।  लेकिन अगले ही दिन से हमारे लोग साथ आये। वो भी तेल, आटा , चावल, दाल, सब्जियां लाकर देने लगे थे।  कोई सब्जियां लाकर देता तो कोई अनाज। सारे मेरी तरह साधारण लोग थे। लेकिन, हम अपना कर्तव्य कर रहे थे।’
‘मजदूर, ट्रक वाले, इमरजेंसी सेवा देने वाले – सबको हमने खाना दिया। प्रशासन ने भी हमें मदद दी।  वहाँ डॉक्टर्स की एक टीम उपस्थित रहती।  किसी को बुखार है तो उसकी टेस्ट करते। इलाज करते। किसी के पाँव में या शरीर में दर्द  है तो दवा देते। पुलिस ने भी बंदोबस्त लगा दिया। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ये किया।  अब भी हमारे यहां हर दिन दोपहर बारह बजे पहले सड़क पर घूमने वाले मानसिक विकलांग या गरीब लोगोंका खाना होता है, फिर ढाबे में ग्राहकोंका खाना शुरू होता है।’
बेटियों की शादी
ढाबा संचालक
 ‘जो किसान आत्महत्या कर चुके हैं या जो किसान काफी गरीब हैं हम उनकी बेटियों की शादी का जिम्मा स्वयं पर लेते हैं। मेहमानों के खाने के साथ। हमारे यहां लॉन है और हॉल भी। जगह भी पर्याप्त है।  उन्हें व्यवस्था या खाने का कोई खर्च नहीं करना। हमारे यहां मंडप डेकोरेशन वाले, मेकअप वाले, शादी की शूटिंग या फोटोग्राफी करनेवाले सब इसमें सहयोग करते हैं।  मेरे यहां प्रतिदिन काम करने वाले श्रमिक भी इस काम का पारिश्रमिक नहीं लेते। ये हम सबके लिए अपने परिवार की  बेटी की शादी होती है।’
मुरलीधर इन सब प्रयासोंके श्रेय अपने ग्राहकोंको देते हैं। उनका तर्क यह है,- ‘यदि ग्राहक मुझे इस योग्य ना बनाते, तो मैं ये सब नहीं कर पाता।’
‘इसी तरह कोरोना में जिन बच्चों के माता पिता चल बसे उन बच्चों को खर्च हेतु प्रति  माह एक हजार रुपये बीस वर्ष तक देने का तय किया।’
ढाबा संचालक

‘इनमे वे बच्चे भी हैं जिनके माता पिता ने आत्महत्या कर ली।  इस तरह इक्कीस बच्चों की मैंने जिम्मेदारी ली । मेरे साथी भी सामने आये और इनमे से दस बच्चों का जिम्मा उन्होंने ले लिया।  सड़क दुर्घटना ग्रस्त लोगोंके  प्राथमिक उपचारकी सुविधा मैंने यहां कर रखी है। इनमें किसीको  अस्पताल पहुंचाना आवश्यक हो, तो वो जिम्मा भी हम लोग संभालते हैं। सबकुछ देश या देश की सरकार करेगी यह सोच ठीक नहीं है। हम सब ने मिलकर भी कुछ करना होगा। मैं जब भी कोई अच्छा काम आरम्भ करता हूँ, मैंने देखा है, कि समाज भी पीछे नहीं रहता।’

वाकई, मुरलीधर राउत की अनूठी पहल से यह ‘होटल मराठा’ अब कोई होटल या ढाबा मात्र नहीं रहा, बल्कि, ‘इंसानियत का मंदिर’ बन चुका है।

संपर्क

मुरलीधर राऊत,
होटल मराठा, मुंबई कोलकाता हाई वे, बालापुर, अकोला

WhatsApp: 91 9822063865

(all images: Hotel Maratha, Balapur, Akola)

Editor India Input

I am a senior journalist. Have reported and edited in print, tv & web, in English, Hindi & Marathi for almost three decades. Passionate about extraordinary positive works by people like you and me.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

20 − 7 =

Back to top button