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मिट्टीके बर्तन: आपकी सेहत केलिए हाथोंसे बने स्टाइलिश पॉटरी!

इंजिनियरिंग का जॉब छोड़ माटी के बर्तन प्रमोट कर रहे नीरज कुमार।

मिट्टीके बर्तन आपकी सेहत के लिये, आपके बजेट में, स्थानीय रोजगार के लिये और पर्यावरण के लिये बेहद आवश्यक हैं! हरियाणा से युवा इंजिनियर नीरज और उनके सी ए साथी अरुण का सपना है, कि देश भर रसोई में माटी के बर्तन का चलन पुनःआरम्भ हो। ये प्रयास है सेहत के लिए, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए और थोड़ा स्टाइलिश भी।

इंडिया इनपुट डेस्क, दिल्ली ।

अब दाल को स्वाद और सेहत के साथ पकानेवाली माटी की एक हांडी ढूंढने आपको बाजार में जगह जगह भटकने की आवश्यकता नहीं होगी । आप घर बैठे दो लीटर क्षमता वाली माटी की स्टाइलिश दिखनेवाली हांडी  ऑनलाइन बुकिंग कर चार सौ पचपन रूपयोंमें होम डिलीवरी बुलवा सकते हैं ।

जी हां, सेहत के लिए खास तौरपर माटी से बने ये बर्तन अब कुरियर से घर पहोंच मंगवाना संभव हैं । इन रसायनरहित बर्तनोंको आप डेढ़, दो साल तक आराम से उपयोग में ला सकते हैं ।

एक बात और । इन माटी के बर्तनोंको साचे और रसायनोंका उपयोग कर नहीं बनाया जाता । ये खास ‘लिमिटेड एडिशन’ हैं, क्योंकि आपके और आपके परिवार के लिए इन्हें कुशल कारीगरों ने डाई या बड़े यंत्रोंसे नहीं पारंपरिक चक्के पर (पॉटरी व्हील पर) अपने  हाथोंसे बनाया है । इसलिए, ये एक दिन में हजारों नहीं बनते, बल्कि एक कारीगर द्वारा एक दिन में ये अधिकतर केवल साठ या सत्तर ही बन पाते हैं ।

मिट्टीके बर्तन
मिट्टीके बर्तन: आपकी सेहत के लिये, आपके बजेट में, स्थानीय रोजगार के लिये और पर्यावरण के लिये बेहद आवश्यक हैं!

मिट्टीके बर्तन मिट्टीके बर्तन

ये देसी माटी के बर्तन आपके और आपके परिवार के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखते हैं और  आप देश के किसी भी कोने में हों, इन बर्तनोंकी कुकिंग हांडी, भगोना, पॉट आदी की रेंज से ऑनलाइन चयन कर कुरियर से अपने घर मंगवा सकते हैं ।

इलेक्ट्रिक इंजिनियरिंग की डिग्री प्राप्त हरियाणा निवासी 28 वर्षीय नीरजकुमार ने ‘मिट्टी आप और मैं’  इस स्टार्ट अप का आरंभ किया । वे इन बर्तनों की डिजाइनिंग और मार्केटिंग का जिम्मा देखते हैं ।  नीरज ‘स्वदेशी’ के प्रख्यात विचारक दिवंगत  राजीव दीक्षित के प्रशंसक हैं । वो बताते हैं, कि ‘मैने जब आरंभ किया तो घरवाले और बाहरवाले कहते थे कि इंजिनियर हो फिर भी ये मिट्टी का काम क्यों करना चाहते हो? किंतु, मैने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया क्योंकि मैं चाहता हूं , देश भर में लोग अपनी रसोई के बर्तन से जुड़ी आदतें सुधारें जिस से उनकी सेहत में अच्छा बदलाव लाया जा सके।’

 

मिट्टीके बर्तन
चलो, पुनः माटी की ओर।

उनके भाई नवीन कुमार और चार्टर्ड एकाउंटेंट मित्र अरुण कुमार ने  ‘मिट्टी आप और मैं’  इस स्टार्टअप में धन लगाया है । अब उनका यह प्रयास शहरी और ग्रामीण ग्राहकों के बीच खासा लोकप्रिय हो रहा है । अपने व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर लोग उनकी फैक्ट्री देखने आने लगे हैं । अपने स्वास्थ्य और इम्युनिटी के विषय में जागरूक लोग ज्यादातर उनकी वेबसाइट पर बुकिंग करते हैं, या जयपुर और गुड़गांव में स्टोर से ये बर्तन खरीद लेते हैं। कोरोना और लॉक डाउन के बावजूद पिछले वर्ष, दो हजार से अधिक ग्राहकोंको उन्होंने ये बर्तन बेचें हैं । यह सब किसी विज्ञापन के बगैर ।

मिट्टीके बर्तन सेहत के लिए लाभदायक कैसे?

नीरज ने माटी के बर्तनों की स्वास्थ्य संबंधी उपयोगिता पर काफी जांच पड़ताल की है । उनका सवाल है, कि यदि हमारे शरीर के भीतर कोई ऍल्युमिनियम, स्टेनलेस स्टील या प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं हुआ है इसका अर्थ इन तत्वोंकी हमारे शरीर को आवश्यकता नहीं है, तो फिर हम उनसे बने बर्तनों में खाना पकाकर अथवा खाकर धीरे धीरे इन चिजोंको अपने शरीर में प्रवेश क्यों देते हैं?

 

मिट्टीके बर्तन

नीरज कुमार का दावा है, कि

-कुकर या अन्य धातु के बर्तनोंमें खाना पकाने से करीब 95 प्रतिशत माइक्रो न्यूट्रिएंट नष्ट हो जाते हैं । मात्र पांच प्रतिशत माइक्रो न्यूट्रिएंट हमारी सेहत को संभाल नहीं सकते ।

– कुकर में दाल पकती नहीं प्रेशर में टूटती है । दालों में प्राप्त युरिक ऐसिड कुकरप्रेशर से बाहर निकल नहीं पाता और बाद में खानेवालोंके जोड़ों में दर्द बनकर उभरता है।

-माटी के बरतनों से पोषक तत्वोंको हानी नहीं होती और वे आपके शरीर में पहुंच पाते हैं । अन्न का पी एच लेवल कायम रहता है ।

उनका कहना है कि, ‘मानवी शरीर को जो चाहिए वह माटी में मौजूद है किसी प्लास्टिक या धातु में नहीं । मसलन,  माटी में आयर्न, सोडियम और कैल्शियम आदी पाए जाते हैं जिनकी हमें आवश्यकता होती है। हमारे शरीर में माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी के चलते अस्थमा, कैंसर, टीबी और कम आयु से चश्मा आदी बातें पेश आती है । हम कुकिंग में पांच दस मिनट बचाते हुए आयु के कुछ वर्ष कम कर लेते हैं । यह प्रयास है, फिर उसी प्राकृतिक स्वाद के लिए भी, जिसे धातु के बर्तनोंके चलते हम शायद भूल गए हैं।’

 

मिट्टीके बर्तन
नीरज के प्रयासोंके चलते माटी के बर्तन अब शो रूम में बिकने लगे हैं।

 

मिट्टीके बर्तनो से क्या ईंधन की अधिक खपत होती है ?

नीरज कुमार कहते हैं कि, उनके माटी के बर्तन से खाना शीघ्र पकता है क्योंकि बर्तन का निचला हिस्सा खास रूप से पतला और खुरदरा रखा जाता है । माटी के छेद खुले रहने से आग और तापमान सहजता से पहुंच पाता है और ईंधन की अधिक खपत नहीं होती ।

ये माटी कहाँसे लाई जाती है ?

सामान्यतः भूमि की तीन या चार फीट खुदाई करने पर पीली चिकनी माटी प्राप्त होने लगती है । और गहराई पर खुदाई से अधिक पीली माटी और मुल्तानी माटी प्राप्त हो सकती है । राजस्थान में पीली और काली माटी के टीले हैं जहांसे प्रजापति समाज के लोग माटी लाते हैं । गेरू के जैसी लाल माटी पहाड़ोंसे बहकर आती है जिसमें पोटैशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है । पीली, काली और लाल माटी से चिकनाई, मजबूती और रंग मिलता है ।

कुरियर में सुरक्षा हेतु बर्तन की पैकिंग कैसे होती है?

ये बर्तन कुरियर द्वारा देशभर भेजे जा रहे हैं । विदेशोंसे भी व्यापार विषयक पूछताछ आरंभ हो चुकी है । कुरियर से भेजे जानेपर टूट फूट न हो इस उद्देश्य से तीन स्तरीय पैकिंग की जाती है । बर्तन को पहले बबल रैप में, फिर हिटलॉन से पैक किया जाता है और अंत में कोरोगेटेड प्लाई बोर्ड के बक्से में बंद किया जाता है ।

 

मिट्टीके बर्तन
नीरज कुमार द्वारा माटी के बर्तनोंका यह ब्रांड अब लोकप्रिय हो रहा है।

 

क्या इस तरह बनाने के प्रयास किए जा सकते हैं ?

नीरज अपने जैसे अन्य लोगोंको तकनीकी मार्गदर्शन के लिए  तैयार रहते हैं । उनका उद्देश्य लोगों की कृति और  समाज की सोच में बदलाव लाना है ।  वो बताते हैं, कि चूंकि उन्हें  कोई सुझाव या मार्गदर्शन करने वाला नहीं था अतः उनके तीन लाख रुपए डाई, पॉवर व्हील और अन्य सामग्री में व्यर्थ खर्च हुए और दोबारा आरंभ करना पड़ा था । आज इस तरह के प्रयास को पांच से सात लाख रूपयोंकी लागत से कहीं भी आरंभ किया जा सकता है ।

सम्पर्क हेतु:

वेबसाईट  : mittiaapaurmai.org

ई मेल पता  : mittiaapaurmai@gmail.com

व्हाट्सएप नंबर  : +91 94664 55703.

(all images: mitti, aap aur mai)

Editor India Input

I am a senior journalist. Have reported and edited in print, tv & web, in English, Hindi & Marathi for almost three decades. Passionate about extraordinary positive works by people like you and me.

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