वनोमें कटाई अर्थात वनभूमि से पेड़ोंकी अवैध कटाई और इस तरह गैर कानूनी ढंग से बेतहाशा काटे जाते पेड़ हम सबकी चिंता का विषय हैं। इस वजह से पर्यावरण, जैव विविधता और सरकारी राजस्व की हानी तो हो रही है ही, किन्तु जंगली पशु उनका अधिवास ख़त्म होने से गाँवोंकी ओर रुख कर रहे हैं और इंसान तथा मवेशियोंकी जान खतरे में है। इन पेड़ोंकी अवैध कटाई मामलोंमें वन विभाग के अधिकारियोंकी मिलीभगत का एक बड़ा मामला सामने आया है जिस से इन घोटालोंकी कार्यशैली उजागर हुई है। सबसे बड़ी बात वन विभाग के अधिकारी इस मामलेकी पारदर्शी जांच करवाने से साफ़ कतरा रहे हैं।
इंडिया इनपुट डेस्क।
वनोमें कटाई के लिये अधिकारी और माफिया की सांठगांठ कैसे काम कार्टी है पढिये!
आपने काले अर्थात गैरकानूनी ढंग से प्राप्त धन को सफ़ेद अर्थात कानूनी बनाने की घटनाएं सुनीं होंगी। अब कुछ ऐसा ही ट्रेंड वन विभाग में दिख रहा है। आम तौरपर जो गैरकानूनी जंगल कटाई होती है उसमें निकाली गई लकड़ी, टिंबर चोरी छुपे बेच दी जाती है। उन्हें अवैध मार्गोंसे ठिकाने लगा दिया जाता है। लेकिन, अवैध रूप से काटी गई लकड़ी को कानूनी या वैध बताने की कोशिश की जाने की घटना महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में सामने आई है। श्री मोहनलाल पटेल तथा व्यापारियोंके संगठन और कार्यकर्ताओंने इस मामले की शिकायत भी की है लेकिन विभाग के आला अधिकारियोंने इस मामलेमें जुड़े संगीन सवालोंको अब तक नजरअंदाज किया है।
फरवरी २०२२ में ये मामला महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के मुरकुट्डोह, तालुका सालेकसा से सामने आया। बात है गट नंबर १३८-१३९ की। इस गट से जुड़े कमल भैयालाल इनवाते कुछ दस बारह किसानोंके साथ सामूहिक खेती करते हैं।
आदिवासियोंको आगे कर हो रहा घोटाला।
आदिवासी किसानोंकी सहायता हेतु आम तौरपर आदिवासी किसानोंके निवेदन पर उनके खेत में वन विभाग की ओरसे उनकी सहायता स्वरुप कुछ काम किया जाता है -जैसे कि, पेड़ोंकी मार्किंग करना, मोजमाप, कटाई, नग बनाना, विक्री डेपो तक यातायात करना और विक्री करना। विक्री के बाद आये रुपयोंसे कार्य पर हुआ खर्च निकालकर शेष रकम आदिवासी किसान को दी जाती है। लेकिन, इस मामलेमें लगता है, कि कुछ निजी ठेकेदारोंने ये काम किये और अधिकारोयोंकी मिलीभगत से इस की आड़ में बड़ा भ्रष्टाचार छुपाने का प्रयास भी किया गया।
रेकॉर्डतोड़ उत्पादन का दावा।
इन दो गटोंका कुल क्षेत्रफल ४.५५ हेक्टर है, इस में २.५ हेक्टर में नियमित कृषि खेती होती रही है। आज भी वहाँ खरीप की खेती हो रही है। अर्थात, शेष लगभग २ हेक्टर भूमिसे लकड़ी का अधिकतम १६ या २० क्यूबिक मिटर तक उत्पादन हो सकता है, जंगल मामलेके कोई भी जानकार आप को बता देंगे कि उस से अधिक उत्पादन संभव ही नहीं है।
इस खेती से प्राप्त लकड़ी के ताजा सरकारी आंकड़े जो वन विभाग ने दिए, वे काफी चौंकाने वाले हैं। सामान्य से चार गुना से ज्यादा उत्पादन होने का दावा महाराष्ट्र के वन अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं।
इसमें ३३.७६ क्यूबिक मिटर (३१८ नग) सागवान, साथ में ६ चौक भर, जलाऊ भर १२, खोडी भर ११ और फाटे २७ निकले। सरकारी दस्तावेज में चौक भर, जलाऊ भर और खोडी भर के क्यूबिक मीटर के आंकड़े नहीं है ! कुल अनुमानित सागवान ६६.७२६ क्यूबिक मीटर है। ८.०२६ क्यूबिक मिटर (५२ नग ) बीजा भी दर्शाया गया है। चौक भर, जलाऊ भर, खोड़ी भर और फाटे आदी का कुल क्यूबिक मिटर ३३ होता है। पास पड़ोस में अवैध जंगल कटाई के ढेरों मामले हैं। वहाँ के साजा, हलदू, आडजात को डोंगरगांव विक्री डेपो में दर्शाया नहीं गया। आदिवासी किसान के खेत से सटे नाले में और सरकारी वन भूमि पर भी ये कटाई हुई लकड़ी साफ़ तौरपर देखी गई है जिनका मोजमाप नहीं हुआ। एक अनुमान के मुताबिक़ करीब ८० क्यूबिक मीटर लकड़ी के उत्पादन का यह मामला है। एक क्यूबिक मिटर ३५ क्यूबिक फुट होता है। लिहाजा इस मामलेमें कटाई उत्पादन का आंकड़ा (८० क्यूबिक मिटर गुणाकार ३५=) २८०० क्यूबिक फुट होता है। जंगल में भी जहां मुक्त रूप से पेड़ बढ़ते हैं, वहाँ भी साढ़े चार हेक्टर से इतना उत्पादन नहीं होता। खेती के क्षेत्र से ये असम्भव है।
जाहिर है, यहां बाहर का माल मिलाया गया है। यह भी साफ़ है कि यह अतिरिक्त माल सरकारी वन भूमि में अवैध कटाई द्वारा प्राप्त किया गया हो सकता है।
इसमें नीलामी के जरिये बीजा लकड़ी बेच दी गई। सागवान की नीलामी के पहले १६ फरवरी २०२२ को व्यापारियोंको सूची मिली। लेकिन, १८ तारीख की नीलामी में सागवान को रखा ही नहीं गया। वजह बताई गयी, कि सागवान का वह माल एक दिन पहले ही डी एफ ओ गोंदिया ने आदिवासी किसान के रिश्तेदारों को बाहरगांव ले जाने की अनुमति दे दी थी, जो की गैर कानूनी है। क़ानून में इतने बड़े पैमाने पर माल आदिवासी किसान को या उसके परिजनोंको वापिस देने का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन, इस बात पर भी वन विभाग के आला अधिकारी मौन हैं।
नीलामी में रखा गया माल नीलामी से पूर्व ही किसान को लौटाने की और अन्य गाँव ले जाने की बात डी एफ ओ द्वारा लिखित आदेश में सूचित की गई ! पूरे मामलेमें गड़बड़ी साफ़ दिखाई देने से व्यापारिओं द्वारा विरोध होने पर उक्त आदेश को आननफानन में डी एफ ओ द्वारा कैंसिल भी कर दिया गया। यहाँ घोटाले की स्पष्टता हो गई।
फिर, इस मामलेमें कई अनियमितताएँ और गड़बड़ियां भी बाहर आने लगी ।
वनोमें कटाई: अनियमितताओं का अम्बार।
मसलन, जब यह सामूहिक खेती है तो कटाई और बिक्री के पूर्व सबकी सहमति आवश्यक है। किन्तु, इस मामले में सामूहिक खेती में दर्ज अन्य किसानों की एन ओ सी प्राप्त नहीं की गई।
वन विभाग के नियमानुसार घर निर्माण के कार्य में उपयोगी अर्थात इमारती लकड़ी के दोनों सिरोंपर हथौड़े से अधिकारी द्वारा निशान किया जाना चाहिए। डेपो में प्राप्त कई नगोंपर केवल एक सिरे पर ही हथोड़े के निशान दिखाई देते हैं।
देखने से साफ़ ऐसा लगता है कि प्रस्तुत माल पड़ोस की सरकारी वनभूमि के पेड़ोंसे है ।
खोड़ी भर का अर्थ होता जड़ और पेड़ के बीच तने वाला हिस्सा। लेकिन, यहां खोड़ी भर है ही नहीं। अचरज की बात यह है कि खोड़ी भर के नामपर खुले आम सागवान टिम्बर दिखाया गया है। क्या यह बात वन अधिकारियोंको दिखाई नहीं पड़ी ? उन्होंने मौन रहना या मूक सहमति देना क्यों पसंद किया ?
अधिकारियों द्वारा पारदर्शी जांच करवाने से कतराना।
आम तौर पर जांच अधिकारी शिकायत कर्ता को जांच या स्पॉट पंचनामा के लिए साथ ले जाते हैं। वन अधिकारी शिकायतकर्ता की उपस्थिति में स्पॉट पंचनामा करने से कतरा रहे है। वरिष्ठ वनाधिकारी चीफ कन्ज़र्वेटर ऑफ़ फॉरेस्ट कल्याणकुमार से शिकायत करने पर भी शिकायतकर्ता की उपस्थिति में स्पॉट पंचनामा और पारदर्शी जांच नहीं कराई गई हैं।
क्योंकि, इन गटोंमें मौजूद ठूंठ को और उनकी गोलाई को गिनने से और डेपो में दिखाई गई लकड़ी का मोजमाप और गिनने से पूरे मामलेका साफ़ भंडाफोड़ हो जाएगा। इसका मतलब यह कि, जांच करेंगे तो लिप्त अधिकारियों पर कारवाई भी करनी होगी।
जांच करवाने के नाम पर नागपुर से जो अधिकारी भेजे गए उन्होंने पंचनामा और जांच को जाते समय शिकायतकर्ताओं को ना तो सूचित किया और नाही साथ लिया। बताया जाता है, कि इस प्रकरण में लिप्त ठेकेदारों के साथ ही वे स्पॉट पर गए और जांच के नाम पर लीपापोती की हैं।
बेतहाशा अवैध जंगल कटाई की दास्ताँ सुनाते यह ठूंठ और कटे पेड़ के हिस्से वन विभाग से कई पैने सवाल कर रहे हैं। वनभूमि के परिसर में पेड़ोंकी कटाई के दृश्य।
वनोमें कटाई: स्टैंडर्ड प्रोसिजर के अनुसार जांच ?
इस मामलेमें सी सी एफ श्री कल्याणकुमार से फोन पर बात ना हो सकी लेकिन, व्हाट्सएप पर संपर्क करने पर उन्होंने जवाब दिया कि जांच के आदेश दिए गए है और इस संदर्भ में स्टैंडर्ड प्रोसिजर के अनुसार जांच होगी ।
अब इसपर कई सवाल उभरकर आते हैं । अव्वल सवाल तो यह है, कि स्टैंडर्ड प्रोसिजर के तहत जांच अधिकारी दूसरे सर्किल का होना चाहिए । इस मामलेमें नागपुर सर्किल के अधिकारी को ही जांच अधिकारी बनाया गया है । जांच को आरंभ करते समय सर्वेयर को साथ लेकर दोनों गट की हद मार्क करना जरूरी है । किंतु, इंडिया इनपुट के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक ना सर्वेयर साथ थे और ना ही कोई मार्किंग की गई ।
उपलब्ध लकड़ी के और स्पॉट पर मौजूद ठूंठ के आकार गिनने के काम केलिए ही दो दिन का अवधि चाहिए । दो ढाई सौ पेडोंकी जांच क्या दो घंटोंमें संभव है? क्या जांच अधिकारी ने आस पास के इलाके का निरीक्षण किया? क्या वहां पड़े कटे पेड़ और ठूंठ देखे? क्या वे डिपो गए? यदि ऐसा इस जांच में नहीं किया गया तो क्या पेड़ोंकी गैरकानूनी कटाई और उसे अन्य लकडियोंमें मिलाकर छुपाने का प्रयास क्या इतना गंभीर मामला नहीं है?अनुभव कहता है कि ऐसे मामलोंकी सघन जांच के लिए कम से कम चार दिन लगते हैं। केवल दो घंटोंकें समय में इतने बड़े मामले की जांच कैसे संभव है? क्या यह मामले को रफादफा करने की हड़बड़ी नहीं है?
क्या सघन और पारदर्शी जांच कभी होगी ?
जंगलोंमें गायब होते पेड़ और बढ़ते ठूंठ इसके गवाह हैं कि यह भारी पैमाने पर अवैध जंगल कटाई का संगीन मामला है। यदि महाराष्ट्र सरकार अकेले गोंदिया क्षेत्र की ही निष्पक्षता से सघन जांच करवाती है तो ऐसे ही कई बड़े मामले सामने आएंगे।
महाराष्ट्र के वन विभाग में ऐसी कई अनियमितताएँ अब सामने आ रही हैं। एक सेवानिवृत्त आई एफ एस अधिकारी ने बताया कि ऐसे मामलोंकी जांच सी बी आई को ही सौंपना चाहिए। वरना इन्साफ नहीं हो सकेगा। इस पर वन विभाग के कुछ अन्य सेवानिवृत्त आला अधिकारियों से इंडिया इनपुट ने संपर्क किया और उनकी राय जाननी चाही । उनकी प्रतिक्रिया संक्षेप में कुछ यों है : ‘इतना अधिक उत्पादन लेने के लिए उक्त किसान का सरकार ने सत्कार करना चाहिए और वन विभाग के सम्बंधित अधिकारियोंको भी प्रमोशन देना चाहिए। कम भूमि पर लकड़ी का इतना अत्यधिक उत्पादन उन्होंने कैसा लिया इसका सीक्रेट शेयर करना होगा ताकि, अन्यत्र इस मॉडल को लागू किया जा सके और देश विदेश की लकड़ी संबंधी बढ़ती मांग की आपूर्ति की जा सके।’
महाराष्ट्र में जारी अवैध जंगल कटाई के खिलाफ इस विशेष मुहीम की दुसरी किश्त: https://indiainput.com/%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%9f%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%9a