FIRE TRAGEDIES IN MUMBAI: क्या बी एम सी ने हार मान ली है?
अग्निकांड होते हैं, जान-माल-प्रगति की हानि होती है, सब दुःख मानते और भूल जाते हैं! बी एम सी पराजित मानसिकता में आगे बढ़ती है।
Fire Tragedies अर्थात अग्निकांड और मुंबई का रिश्ता पुराना है! दिसंबर 2021 में मुंबई कमला मील कंपाऊंड अग्निकांड को हुए चार वर्ष पूरे। मुंबई महापालिका चुनाव भी सरपर हैं । लेकिन, फायर सेफ्टी में हालात ज्यों कि त्यों। क्या बी एम सी केलिए मुंबईवासियोंकी जान की कोई क़ीमत नहीं? किसीभी आम मुम्बईकर से उसकी राय पूछिए, वह यही कहेगा, अग्निकांड होते हैं, जान-माल-प्रगति की हानि होती है, सब दुःख मानते और भूल जाते हैं! बी एम सी पराजित मानसिकता में आगे बढ़ती है।
मुंबई से संजय रमाकांत तिवारी।
क्या आग जैसी विपदा से निपटनेकेलिए धनाढ्य मुंबई महानगरपालिका (बी एम सी) वाकई गंभीर है, या उसने हार मान ली है? RTI एक्टिविस्ट और जानकार मानते हैं, कि मुंबई महानगरपालिका इन मामलोंमें कतई गंभीर नहीं है, बल्कि उसके कदमोंसे उनको राहत मिलती दिख रही है, जो नियमोंका उल्लंघन करते हैं । फिर आगसे बचाव केलिए क्या है रास्ता ?
क्या मुंबई और आग की घटनाओंका रिश्ता गहराता जा रहा है?
Fire Tragedies in Mumbai: अग्निकाण्ड घटनाओंकी लम्बी फेहरिस्त!
मुंबई में २०१२ से २०१८ इन छः सालोंमे हर साल, आग लगनेकी करीब ५ हजार घटनाएँ हुई जिनमे करीब ५० मौतें हुईं । वर्ष २००८ से २०१८ इन दस वर्षोंके आंकड़े और भयावह हैं : आग लगने की ४८,४३४ घटनाएं और इनमें ६०९ मौतें । अर्थात प्रति वर्ष वही लगभग ५ हजार घटनाएं और औसतन ६० मौतें।
ये आंकड़े बटोरे हैं, कांदिवली, मुंबईके ३९ वर्षीय आर टी आई एक्टिविस्ट शकील शेखने जिनका कहना है कि, उन्हें सूचना के अधिकार के तहत मुंबई महानगरपालिका से मिली जानकारी बेहद डरावनी और चौंका देने वाली है। वर्ष २०१८ में २५ मई को जारी जानकारी के मुताबिक, २०१२ से लेकर छह सालोंमें २९ हजार १४० आग की घटनाएँ मुंबई शहरमे हुयी जिसमे ९२५ लोग जख्मी हुए। इनमे फायर ब्रिगेड कर्मी और अधिकारियोंकी संख्या १२० है। इन हाद्सोंमें करीब ३०० मौते हुईं। आग या शॉर्ट सर्किट के
वर्ष २०१९ में ५२५४ और वर्ष २०२० में लॉकडाउन के बावजूद ३८४१ मामले सामने आए । इनमें सन २०१९ में २१६ जख्मी हुए और ३८ मौतें हुईं। २०२० में १०० जख्मी हुए और ३३ मौतें हुईं।
जानकारी देने के बजाए जानकारी मांगनेवाली बी एम सी ।
बी एम सी से जानकारी माँगी गयी थी कि, मुंबई महानगरपालिका द्वारा चलाई जा रही स्कूलोंमें और अस्पतालोंमें क्या आग से सुरक्षा के उपकरण लगे हैं, क्या नियमोंका पालन हो रहा है और क्या वहाँपर फायर ऑडिट हुआ है ? इस पर पूरी जानकारी ना देते हुए उलटे जिन स्थानोंकी जानकारी चाहिए उनके सिटी सर्व्हे के नंबर्स मांगे गए ।
indiainput.com से बात करते हुए शकील कहते हैं कि, इसपर मैंने उन्हें पूछा, क्या ऐसी जरूरी जानकारी सिटी सर्व्हे के अनुसार रखी जाती है ? जब कहीं आग लगती है तो क्या कॉलर से, या पत्रकारोंसे लोकेशन केलिए सिटी सर्व्हे नंबर मांगते हो? क्या मुंबई महानगरपालिका के पास अपने किये कामोंकी भी सूची नहीं है? इसी से साफ़ है कि, गोवा जैसे राज्योंसे भी ज्यादा रेव्हेन्यू पानेवाली बी एम सी आग के खतरे से निपटनेके मामलेमें बिल्कुल गंभीर नहीं है। उनके दावे खोखले हैं।
महानगरी मुंबई की किस्मत
तो क्या आग के मामलोंसे जूझते रहना अब महानगरी मुंबई की किस्मत बन चुकी है? यह सवाल इसलिए, क्यूंकि लोगोंका मानना है कि, शायद मुंबई महानगरपालिका ने हार मान ली है ! जीहां, ऊंची से ऊंची इमारतोंकी बढ़ती तादाद, घनी होती आबादी से पेश आती चुनौतियाँ और स्वयं से अपेक्षित सक्रियता के अभाव के चलते बी एम सी ने शायद हार मान ली है! दिसंबर २०१७ को हुए कमला मिल कम्पाउंड आग हादसे से कमसेकम १४ जानें गयीं। इस मामलेमें सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अगुवाई में एक ३ सदस्यीय कमिटी आग के कारणों और नियमोंके उल्लंघनोंका पता लगाने जाँच हेतु नियुक्त हुई। शेख कहते हैं कि कमिटी की सिफारिशों पर ठोस अमल नहीं हुए । नियमोंकाउल्लंघन करनेवाले जिन रेस्तरां की बिजली और पानी की सप्लाई बंद कीगई उनमें से ज्यादातर आज भी शुरू हैं । यह कैसे हो सकता है? लेकिन हुआ है। इसी बात से आप हालातोंका अंदाजा लगा सकते हैं।
मुंबई के प्रभादेवी इलाकेमें ३३ मंजिला बिउ मोंड इमारत के ऊपरी दो मंज़िलोंमे जून २०१८मे १३ तारीख को आग लग गयी जिसमे २ दमकल कर्मी घायल हुए। फिल्म अभिनेत्री दीपिका पदुकोण का रिहायशी फ्लैट इसी इमारत में होनेसे इस घटनाने सुर्खियाँ बटोरीं। क्या बार बार अग्निकांडोंके खतरोंसे देश की आर्थिक राजधानी महानगरी मुंबई छुटकारा पा सकेगी? शायद नहीं, क्यूंकि, आग के प्रतिरोध से ज्यादा अहमियतवाले या दिलचस्प काम मुंबई महानगरपालिका को व्यस्त रखते हैं।
अव्वल मुद्दा तो यह है कि, आसमान छूती ऊँची ऊँची इमारतोंको अनुमति कैसे दी जाती है, यदि उसकी आधी ऊँचाई तक पहुँचपानेके उपकरण महानगरपालिका के पास नहीं हैं ? उन इमारतोंके भीतर फायर सेफ्टी के ज़रूरी पुख्ता इंतजाम हैं या नहीं हैं? बकौल शकील शेख, आग लगनेपर सबसे पहले उस इमारत की बिजली आपूर्ति बंद की जाती है। यदि नियमोंके अनुसार, इमारत के भीतर जो फायर लिफ्ट होनी चाहिए वह नहीं है, या उसके लिये ज़रूरी अलगसे बिजली आपूर्ति व्यवस्था नहीं है, अलग से सीढ़ियाँ नहीं हैं, तो बाहर से क्रेन या उपकरणोंके ही भरोसे सहायता करनी पड़ेगी।
Fire Tragedies: जनहित यचिका और ‘तारीख पे तारीख’।
हकीकत यही है कि, आग से बचाव केलिए इमारतोंके भीतर नियमोंके अनुसार जो आवश्यक और अनिवार्य इंतजाम होने चाहिए वो नहीं हैं। और तो और, आग से मुकाबले केलिए बाहरी उपकरण ईमारत की आधी ऊँचाई तक नहीं पहुँच पाते।
२०१४ में बॉम्बे हाई कोर्ट में इन जैसे जरूरी मुद्दोंपर याचिका दायर करनेवाली डॉ शर्मिला घुगे स्वयं कानूनविद हैं और मुंबई के अग्निकांडोंपर अध्ययन कर चुकी हैं। indiainput.com से बात करते हुए वे कहती हैं कि, मुंबई शहर में करीब सौ फायर स्टेशन होने चाहिए लेकिन सिर्फ ३० हैं। एम्प्लॉयमेंट भी कम हैं। ऊँची इमारतोंमें अनिवार्य फायर एग्जिट रूट्स और आग से बचाव हेतु आवश्यक स्थान अर्थात रेक्यूजल एरियाज आज भी क्यों नहीं दिखाई देते ? अग्निकांड से बचनेकेलिए खुला एरिया छोड़ना अनिवार्य है। लेकिन, देखने जाएँ तो, हर रैक्यूज स्पेस की जगह पर आपको एक फ्लैट मिल जाएगा। फिल्म अभिनेत्री दीपिका पदुकोण के फ्लैट वाली ईमारत में लगी आग बुझानेकेलिए ३०वी मंजिल तक पहुंचनेवाली सिस्टम नहीं थी। मुंबई महानगरपालिका द्वारा फायर सेफ्टी सर्वे और ऑडिट केलिए बाहरी एजेंसियोंकी जो सेवाएँ ली गईं , उस से हालात क्योँ नहीं बदल सके? उनके कामपर वाकई मॉनिटरिंग हुआ क्या? २००६ में महाराष्ट्र सरकार द्वारा पारित क़ानून के तहत, महानगरपालिका कॉर्पोरेशन टैक्स के अलावा फायर टैक्स चार्ज करती है। आग से बचाव हेतु उपकरण खरीदने केलिए सैंकड़ो करोड़ रूपयोंके इस निधि का क्या हुआ?
सच यही है कि, नियमोंका पालन करवानेकी जिम्मेदारी महानगरपालिका भूल नहीं सकती। नियमोंका उल्लंघन करनेवालोंको हादसोंके बाद सिर्फ नोटिसेस देकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। शकील शेख एक अन्य आर टी आई अर्ज पर मिली जानकारीके बारेमें बताते हैं कि, मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त द्वारा विभिन्न विभागोंको गलतियोंकेलिए या गड़बडियोंकेलिए सन २०१७ में ५८ मामलोंमें पेनल्टी लगाईं थी। इनमे सर्वाधिक ४५ मामले बिल्डिंग एंड इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के खिलाफ थे। यह वही विभाग है जिसपर अवैध तरीकेसे नियमोंके खिलाफ हुए निर्माण को तोड़ने का जिम्मा है।
२०१४ में डॉ शर्मीला घुगे द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में उन तमाम जरूरी नियमोंका जिक्र किया गया था जिनपर अमूमन अमल नहीं किया जाता। जैसे आग से सुरक्षा सम्बन्धी तमाम जरुरी आवश्यकताओंकी जबतक पूर्ति ना हो जाए, उस इमारत को रहनेयोग्य होनेका प्रमाणपत्र ना दिया जाए। या फिर जैसे ईमारत मालिक या निवासी को साल में दो बार आग सम्बन्धी तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति होनेका उचित एजेंसी से प्रमाणपत्र पाकर फायर अफसर को देना जरूरी है।
Fire Tragedies: बी एम सी की गंभीरता बिलकुल नहीं दिखती..’
लेकिन, दिक्कत इस बात की है कि, महानगरपालिका की ओर से अदालत के आगे जवाबी शपथपत्र फ़ाइल करनेमें बार बार देरी उनके रूख और रवैये को साफ़ करती रही है। याचिकाकर्ता डॉ शर्मीला indiainput को बताती हैं कि, याचिका दायर हुए सात वर्ष हो रहे हैं, बी एम सी की गंभीरता बिलकुल नहीं दिखती। यह एकदम साफ़ है कि वो या तो खानापूर्ती कर रहे हैं या टाईमपास। अधूरे जवाब देना, बार बार नयी तारीखें लेना, जवाबी शपथपत्र देनेमें देरी करना इन चीजोंसे अब मेरा धीरज जवाब दे रहा है। क्यूंकि, उनके पास देनेलायक ठोस जवाब है ही नहीं। यदि मुंबई महानगरपालिका ने ठोस काम किया है, तो अदालत के सामने सबूतोंके साथ पूरे जवाब ‘ऑन रिकॉर्ड’ क्यों नहीं देते? मतलब यह कि, कितनी नोटिसेस दी, कितना निधी इकठ्ठा किया, कितनी एजेंसियोंको हायर किया, कहाँ कहाँ गड़बडियोंका सर्व्हे किया, यह सब क्यों सामने नहीं आरहा ? फिर हमारी पी आई एल में जनहित वाली बात कैसे सफल होगी?
Fire Tragedies: अदालत में उठे मुद्दे
७० मीटर या ज्यादा ऊँचाई वाली इमारतोंकेलिए एन बी सी द्वारा जरूरी बताई गयी बातों को डेवलपमेंट कण्ट्रोल रेग्युलेशन डी सी आर में शामिल क्यों नहीं किया गया था। यदि नहीं तो फिर महाराष्ट्र रीजनल एंड टाउन प्लानिंग एक्ट, १९६६ के प्रावधानोंके तहत किया जाना जरुरी था। जस्टिस ओक एवं जस्टिस सैयद द्वारा १ अगस्त २०१६ के आदेश में साफ़ उल्लेख है कि, नैशनल बिल्डिंग कोड में बताये गए आग से सुरक्षा के प्रावधानोंके अनुसार डेवलपमेंट कंट्रोल रेग्युलेशन में जरुरी बद्लावोंकेलिए महानगरपालिका द्वारा कदम नहीं उठाये गए ।
फरवरी २०२० में माननीय उच्च न्यायालय ने डायरेक्टर फायर सर्व्हिसेस ग्रुप ए यह अहम पद साडे चार वर्ष से रिक्त है इसपर उसे फौरन भरने हेतु दिशा निर्देश जारी किये थे।
दमकल कर्मीयों के पास जूते भी नहीं थे !
ईमारत निर्माण पूर्णता का प्रशस्तिपत्र (ऑक्युपेशन तथा कम्प्लीशन सर्टिफिकेट) देनेसे पूर्व सम्बंधित क़ानून की पूर्ती की पड़ताल करने सम्बन्धी भी अदालत ने पूछताछ की । अदालत ने इन जैसे कई मुद्दोंको अपने अंतरिम आदेशोंमे उठाया । अंतरिम आदेशोंसे यह भी साफ़ होता है कि, आग पर काबू पाते हुए घायल हुए या मृत हुए फायर ब्रिगेड कर्मियोंको उचित मुआवजा तथा उनके परिवारके किसी सदस्यको अनुकम्पा के तौरपर नौकरी देने के विषयमें भी अदालत को बार बार कहना पड़ा है। डॉ शर्मीला घुगे दमकल कर्मियोंकी मौतोंके ऐसे मामले बताती है जिनमे दमकल कर्मी के पास ठीक जूते नहीं थे या सुरक्षा के उपकरण नहीं थे। फिर भी लोगोंको बचाने वे आग में कूद गए थे। क्या उनके प्रति, उनके परिजनोंके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है?
Fire Tragedies: फायर सेफ्टी नॉर्म्स
जमीनी हकीकत आज भी यही है कि, मुंबई शहर के ही कमसेकम २० से ज्यादा नामांकित रेस्ट्रॉं, पब्स, बार एवं होट्लोंके बारेमें यह तो कहा जा सकता है कि, इनके खिलाफ शिकायतें मुंबई महानगर पालिका को समय समय पर दी गयी हैं। इसके अलावा सोशल मीडियापर भी इनके बारेमें अक्सर पढनेको मिलता रहा है। किन्तु, मुंबई महानगर पालिका की ओर से अभी तक ठोस कारवाई का इंतज़ार है। आग लगनेपर लोगोंको सुरक्षित बाहर जानेकेलिए चौड़ा मार्ग (वाइड एग्जिट रूट ) आवश्यक है। लगभग इन सभी स्थानोंपर सैंक़ड़ोंकी तादाद में भीड़ कई बार देखी जा सकती है, किन्तु फिर भी इनमेसे तकरीबन हर जगह पर संकरी एग्जिट, या एग्जिट के नामपर केवल लिफ्ट का होना, छत का पूरी तरह से आच्छादित होना याने कव्हर्ड टेरेस आदी गंभीर समस्याएँ हैं।
२०१७ दिसंबर में कमला मिल कम्पाउंड स्थित पब और रेस्तरॉं में आग के चलते हुई तबाही और मौतोंके बाद मुंबई महानगरपालिका की ओर से कुछ कारवाई हुई लेकिन, बादमे मामला कुछ ठंडा पड़ते ही शायद, सब भुला दिया गया। उस समय मात्र ४ दिनोंमे करीब १ हजार रेस्तरॉ पर कारवाई हुयी थी । indiainput.com से बात करते हुए शकील शेख पूछते हैं कि, ४ दिनोंमे इनसबकी सूचनाएँ यकायक कहाँसे आयीं। बी एम सी वाले पहले कहते थे कि, फायर सेफ्टी नॉर्म्स के उल्लंघन कर कितने पब और रेस्तरॉं चल रहे हैं इसकी जानकारी नहीं है। आज भी फायर सेफ्टी नॉर्म्स के मुंबई भर धड़ल्ले से उल्लंघन के उदाहरण दिखाई देते है। एन ओ सी के बिना, लाइसेंस के बिना, फायर सेफ्टी नॉर्म्स कम्प्लायंस के बिना रेस्तरॉं चल रहे हैं, जो बी एम सी के अधिकारियोंको शायद नहीं दिखाई देते।
जरूरी जानकारियाँ हैं कहाँ ?
बी एम सी के फायर यूनियन लीडर रमाकांत बने indiainput.com से बात करते हुए बताते हैं कि, – आग लगनेकी सूचना मिलनेके बाद फायर स्टेशन से निकलकर घटनास्थल पर पहुँचने तक दमकल कर्मियोंको कम्प्यूटर द्वारा उस इमारत का नक्शा और आजूबाजूकी पूरी जानकारी मिल जाना चाहिए। जैसे वहाँ फायर लिफ्ट है क्या, इलेक्ट्रिकल सप्लाई कैसा है, भीतर जाने और बाहर आनेके क्या रास्ते हैं आदी । अर्थात, आप कहांजा रहे हैं, वहांकी स्थितियाँ क्या हैं, क्या है और क्या नहीं हैं, कौन से नियम पालन हुए हैं आदी। ये मूलभूत जानकारियां समय पर उपलब्ध होंगी तब ही दमकल कर्मी बेहतर प्लान कर सकेंगे। तब ही वे अपने काम को बेहतर अंजाम दे सकते हैं। लेकिन ये मुलभूत जानकारियाँ या रेकॉर्ड उन्हें उपलब्ध नहीं होता है। हम २०१६ से यह मांग करते रहे हैं। लेकिन, अब तक वही पुराना तरीका शुरू है । आज भी दमकल कर्मियों कों यह जानकारी उपलब्ध नहीं की जाती। जब दमकल कर्मीकी सुरक्षा नहीं है, तो आम जनता की कैसे हो? सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़, गड़बडियोंको रोकने केलिए दो अलग विभाग होने चाहिए। अनुमति तथा लाइसेंस प्रमाणपत्र देनेवाला विभाग अलग होना चाहिए और वहां की ऑडिट करनेवाला विभाग अलग होना चाहिए। मतलब जो लाइसेंस देते हैं वही ऑडिट भी करते हैं । अभीभी दोनों एक ही हैं। तो गलत काम कौन रोकेगा, कौन इसकी अहमियत समझेगा और कौन सुरक्षा की बात पर अमल करेगा?
बस, पाइप लो, पानी मारो !
श्री बने के अनुसार, स्टैंडिंग ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। दुर्घटनायोंका अध्ययन कर पायी जानेवाली खामियाँ अन्य स्थानोंसे दूर की जानी चाहिए। इस अध्ययन कमिटीमें एक्सपर्टस के अलावा दमकल कर्मीयोंके प्रतिनिधी भी शामिल होने चाहिए । क्योंकि, उन्हें ही जमीनी वस्तुस्थिति का ज्ञान होता है । भिन्न स्थानोंपर आग लगने के अलग अलग तरीके होते हैं। अभी काँच की दीवारोंका चलन बढ़ रहा है। ऐसे में वहां आग लगनेपर आग और धुंआ अलग तरीकेसे बाहर आते हैं। सिर्फ ‘पाइप लेकर पानी मारनेका’ इतना ही मालूम होगा तो कैसे होगा? ये गलत है।
श्री बने बताते हैं कि, अभी हमारेपास जितने इंजिन हैं उतने क्रू नहीं हैं। आज आग लगनेपर फायर स्टेशन पर दमकल वाहन होने के बावजूद दूसरी जगह से स्टाफ बुलानेमे समय जाया होता है। तब तक पर्याप्त संख्या में फायर ब्रिगेड उपकरणोंके साथ दमकल कर्मियों के पहुंचने में विलंब होना सभी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है । इस खतरे को दूर करने के लिए रिक्त पदों पर वेकेंसी कब भरी जाएंगी? इंजिन और क्रू विभागोंमें आज जितनी तादाद में लोग काम पर हैं उनके साठ प्रतिशत लोग और लाने होंगे। गाडियोंका उचित रखरखाव एक और अहम मुद्दा है जिसे हर ६ महीनोंमें देखा जाना चाहिए।
सिक्योरिटी गार्ड चाहिए, फायर सेफ्टी गार्ड क्यों नहीं?
आग से जुड़े नियम और तकनीक के जानकार प्रवीण सिंह अग्नीसुरक्षा अर्थात फायर सेफ्टी तथा ऑडिट के विशेषज्ञ हैं। वे indiainput.com द्वारा संपर्क किए जाने पर पूछते हैं, – आमतौरपर बिल्डिंग में ‘राऊंड दी क्लॉक’ सुरक्षा गार्ड रखे जाते हैं, तो अग्निशमन सेवाओंके उचित क्रियान्वयन केलिए फायर सेफ्टी गार्डस क्यों नहीं रखे जाते? जब इमारत की रखरखावकेलिए धनराशी मुहैय्या हो जाती है तो फायर सेफ्टी केलिए क्यों धन की कमी हो जाती है? जाहीर है, हम सबको अपनी सोच बदलनी होगी।
Fire Tragedies: बचाव केलिए क्या है रास्ता ?
अग्नी मामलोंमे विशेषज्ञ प्रवीण सिंह के शब्दोंमें, यदि इमारत को बनाते समयही नैशनल बिल्डिंग कोड (एन बी सी) के मानदण्डोंके अनुसार प्रयोजन करें, शुरू से निर्माण कार्यके अंत तक, तो बिल्डिंग सुरक्षित रहेगी। यदि अग्निशमन सेवा की पुलिस सेवा से तुलना की जाए तो किसी थानेके इलाकेमें अपराध हों तो थाना इंचार्ज की जवाबदेही बनती है। उसीतरह हर फायर अफसर यह मानले कि हमारी एरिया में जितनी इमारतें हैं, उनकी फायर सेफ्टी मेजर्स, रखरखाव आदि का समय समय से आकलन करना है, खामियां दूर करना है और लोगोंको जागरूक कर प्रेरित करना है । यह क्यों नहीं हो पाता ? अग्निशमन सेवामें सही शिक्षा और जागृति का अभाव है। बहुत कम ऐसी संस्थाएँ हैं जहाँ से अच्छे फायर प्रोफेशनल्स मिल रहे हैं।
मुंबई आतंकी हमले के दौरान होटल में आगसे मचाई गयी तबाही, कमला मिल कम्पाउंड मामला, अभिनेत्री दीपिका पदुकोण जिस इमारत में रहती हैं, वहांका अग्निकाण्ड आदि घटनाओंका जिक्र करते हुए प्रवीण सिंह indiainput.com को बताते हैं कि, आग से सुरक्षा हेतु सम्बंधित सलाहकार ने यदि फायर सेफ्टी प्रोव्हिजन की सही सलाह दी होती तो इतनी तबाही बिलकुल ना होती। हाई राइज बिल्डिंग में आगसे बचावके स्वयंपूर्ण प्रावधान होने चाहिए। आग की स्थिति में यह सिस्टम स्वयंचलित ढंग से अपनेआप काम करेगी । हाइड्रंट्स , स्पीकर्स, फायर डिटेक्शन एंड अलार्म सिस्टम ये सब ऑटोमेशन मोड में हो, तो आग लगते ही पानी की मोटर तथा ऑटोमेटिक स्प्रिंकलर्स ऑन होकर फायर टेंडर्स आनेसे पहले ही आग को काबू में लाया जा सकता था । महानगर पालिका के साथ साथ बिल्डर और वहाँ के निवासी नागरिक भी जिम्मेदार हैं। पूरे परिवार को फायर सेफ्टी का प्रोव्हीजनल ट्रेनिंग होना चाहिए। सिस्टम की जानकारी स्थानीय लोगोंको भी हो ताकि समय पड़नेपर वे स्वयं आगसे बचाव कर सकें।
२००६ में महाराष्ट्र सरकार द्वारा पारित क़ानूनके विषयमें प्रवीण सिंह दो टूक कहते हैं, एन बी सी में सुरक्षा और प्रतिरोधक तरीके (प्रोटेक्टिव एंड प्रिवेंटिव मेजर्स ) काफी विस्तार से दिए गए हैं। नैशनल बिल्डिंग कोड (एन बी सी) के होते हुए किसी और कानून की आवश्यकता नहीं थी। जरूरत थी एन बी सी के प्रावधानोंको कड़ाई से लागू करनेकी। लेकिन, महाराष्ट्र की जिस तत्कालीन सरकार ने जल्दबाजी में नया कानून पारित कर लिया उसने ही इसे सफल बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
मुंबई: हादसोंका शहर
यदि रोमैंटिक वजहोंसे मुंबई को हादसोंका शहर कहा जाता है, तो अब उसके पीछे गंभीर घटनाओंकी लम्बी फेहरिस्त भी है । २६ जुलाई २००५ जैसी ज्यादा बारिश हो तो लोग मारे जाते हैं। पेड़ अचानक गिर जाते हैं और लोगोंकी जानें चली जाती हैं। किस खुले मेनहोल या गटर में कौन कब चला जाए, कहा नहीं जा सकता। इन जैसी तमाम घटनाओंके सी सी टी वी फुटेज आज सोशल मिडिया में वायरल हो चुके हैं। सामान्य मुम्बईकर को मानो आग की घटनाओंकी अब आदत सी हो चली है। बी एम सी चलानेवाले थोड़ा कुछ बयान देकर वो राजनीति या जो भी करते रहते हैं, उसमे व्यस्त हो जाते हैं। हादसे मुंबई की किस्मत जो बन चुके हैं! दौड़ते भागते रहना तो मुंबई की मज़बूरी है ही।
(फोटो : आज़ाद जैन, मुंबई)
(images: Azad Jain, Mumbai)