डायरेक्ट मार्केटिंग समय की आवश्यकता है! ‘यदि किसान मौजूदा मंडी के भरोसे रहा तो उसकी उन्नति संभव नहीं है। किसानोंको मार्केटिंग की स्वतन्त्रता देने वाले कृषि क़ानून अब वापिस लिए जा चुके हैं। ऐसे में, अब किसानों को स्वयं का उद्धार स्वयं करना होगा। किसानों को अपने ग्राहक स्वयं तलाशने होंगे और उनकी आवश्यकताओं को समझ कर उनके द्वार तक कृषि उपज पहुंचानी होगी।’ ज्ञानेश्वर बोडके, किसान और लीडर, ‘अभिनव क्लब’ ।
संजय रमाकांत तिवारी
‘भारतीय किसान संकट में हैं क्योंकि, कृषि उपज में लागत मूल्य की वापसी की कोई गारंटी नहीं है। कपास या अन्य कॅश क्रॉप का लालच एक छलावा साबित हुआ है। देखा गया है जहां कॅश क्रॉप लिए जाते हैं वहीँ किसान अपने बच्चोंको नहीं दे सकता और कर्ज के जाल में है। यदि किसान मौजूदा मंडी के भरोसे रहा तो उसकी उन्नति संभव नहीं है। किसानोंको मार्केटिंग की स्वतन्त्रता देने वाले कृषि क़ानून अब वापिस लिए जा चुके हैं!’
‘ऐसे में, अब किसानों को स्वयं का उद्धार स्वयं करना होगा। किसानों को अपने ग्राहक स्वयं तलाशने होंगे और उनकी आवश्यकताओं को समझ कर उनके द्वार तक कृषि उपज पहुंचानी होगी। हमारा अनुभव है, कि किसान को मण्डियोंमें यदि कुछ सब्जियाँ बीस हजार रुपयोंमें बेचकर लौटना पड़ता है, तो वही और उतनी ही सब्ज़ियोंको डायरेक्ट मार्केटिंग द्वारा सीधे ग्राहक को बेचनेपर एक लाख रुपयोंतक आमदनी हो सकती है। मतलब, इससे किसान बचता है और किसानी भी। इस पद्धति में ग्राहक को भी अच्छा माल, घर पहुँच मिलता है। अर्थात, इस पद्धति से दोनों का लाभ है।’
‘वर्तमान व्यवस्था में स्थापित बीच के दलालों को हटाना होगा और ‘डायरेक्ट मार्केटिंग’ (प्रत्यक्ष विपणन) से काम करेंगे तो ना सरकारी सबसिडी की आवश्यकता होगी और ना ही कर्जमाफी की। किसानोंको आर्थिक तंगी, कर्ज और ख़ुदकुशी के जाल से बाहर निकालने हेतु -यह ही है किसानोंको बचाने और बढ़ाने का एकमात्र रास्ता,’ यह कहना है ज्ञानेश्वर बोडके का जो चाहते हैं, कि देश के हर ग्राम में किसान ‘अभिनव क्लब’ के सदस्य बनें।
किसानोंको आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से श्री बोडके द्वारा स्थापित किसानोंके ‘अभिनव क्लब’ में आज छह राज्योंके करीब एक लाख छप्पन हजार सदस्य हैं और वार्षिक टर्नओव्हर चार सौ करोड़ तक पहुँच चुका है। ‘अभिनव क्लब’ चार राष्ट्रीय और दो सौ से अधिक अन्य सम्मान प्राप्त कर चुका है। स्वामी रामदेव, श्री श्री रविशंकर यह प्रयोग देखने स्वयं फार्म पर आ चुके हैं।
बोडके और उनके साथी किसान ना राजनीति करते हैं और ना ही घोषणाएँ देते हैं। उनके पास इन चीजोंके लिए समय ही नहीं है। बस उन्होंने किया यह है कि, किसानों को नई राह दिखाई है । सब मिलकर ‘अभिनव क्लब’ के रूप में अपने कर्म प्रयासोंसे ऐसी व्यवस्था खड़ी की है जो आज देश भरके किसानोंके लिए आशा की किरण बन चुकी है। हाल ही में उन्होंने indiainput.com से बात की और अपनी अब तक की यात्रा और आगे के लक्ष्यों के बारे में बताया।
एक खबर ने बदल दिया जीवन।
पुणे जिलेमें मुळशी तहसील में मान गाँव के हैं ज्ञानेश्वर बोडके। पिता छोटी भूमि के किसान। बचपन में बिना किसी चप्पल या जूते के सात किलोमीटर रोजाना पैदल चलकर स्कूल पहुँचते थे। घर में खेत का टुकड़ा था। किन्तु, कृषि की बदहाली देखी थी, कि जिनके पास दस एकड़ खेती होती, उनके परिवार का भी गुजारा नहीं हो पाता था। लिहाजा वो मात्र कुछ रुपयों केलिए एक निजी जॉब करते थे। सुबह छह बजे घर से चलते तो वापिस रात को ग्यारह बजे लौट पाते।
वर्ष १९९९ में उन्होंने एक अखबार में एक खबर पढ़ी और उनका सोचने का नजरिया बदल गया। दरअसल खबर सांगली जिलेके एक अल्पशिक्षित किसान की थी जिसने मात्र एक हजार स्क्वेयर मीटर भूमि पर पॉलीहॉउस फार्मिंग द्वारा बारह लाख रुपयोंकी कमाई कर दिखाई थी। उन्होंने पड़ोस के लैंड लाइन फोन से उस किसान का फोन नंबर डायल कर उस से बात की। उस किसान ने उन्हें अपना पॉलीहॉउस देखने बुलाया। हालात इतने बुरे थे, कि उस किसान के गाँव जाने हेतु बस का किराया देने उनके पास पंद्रह रुपये तक नहीं थे।
लेकिन ज्ञानेश्वर बोडके हार माननेवाले कहाँ थे? उन्होंने एक दूध के टैंकर वालेको पॉंच रुपये देकर मनाया और पहुँच गए उस किसान के गाँव। उस दिन को स्मरण कर वे बताते हैं, -‘मैं उस गाँव में पहुंचा जरूर लेकिन, मुझे उस किसान तक पहुँचने में दो घंटे लग गए। अपने देश में किसी किसान का नाम पता कोई याद नहीं रखता। हाँ, किसी शराब के ठेकेवाले की बात और है। सौभाग्य से मैं वह खबर की कतरन साथ लाया था। मैं जब उस किसान तक पहुंचा तो मैंने देखा सामने आया आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त एक सामान्य व्यक्ति। मैंने उसके खेतमें पॉलीहॉउस देखा। उसने मुझे बैंक ले जाकर अपने अकाउंट में जमा रकम का आँकड़ा भी दिखाया।’
‘मुझमें विश्वास जागा और घर लौटनेपर मैंने नौकरी छोड़कर खेती करने की इच्छा जाहिर की। मेरे निर्णय से पिता अचरज में थे और नाराज भी। दो महीने बात भी नहीं की। इसकी जायज वजह थी। कई बार ऐसा भी हुआ था, कि उन्होंने पैंतीस हजार रुपये धान की फसल पर खर्च किए, लेकिन बेचने पर हाथ में कुछ एक हजार रुपये ही आये थे।’
ज्ञानेश्वर अपने फैसले पर अडिग रहे। पिता ने फिर समझाया, कि नौकरी छोड़ने से पहले शादी कर लो। फिर किसानी करोगे तो कोई अपनी लड़की तुमसे नहीं ब्याहेगा। लोग अपनी बेटी किसी नौकरी वाले को ही ब्याहना चाहते हैं जिसे हर माह तनख्वाह मिलती है, भले ही वह शख्स शराबी क्यों न हो ! शादी तय हुई। लेकिन, ज्ञानेश्वर ने स्वयं होनेवाले ससुराल जाकर अपनी योजना सबको बताई। उन्हें बताया, कि वे नौकरी छोड़ना चाहते हैं और कैसे आधुनिक किसानी करना चाहते हैं। ससुरालवालोने हामी भरी और उनकी शादी हो गई। फिर एक सरकारी संस्था से उन्होंने पॉलीहॉउस की प्रशिक्षा ग्रहण की। लेकिन, वह ट्रेनिंग ज्यादातर किताबी रूपमें थी और वहाँ कोई प्रत्यक्ष कार्य का अनुभव नहीं था। फिर वे अगले एक वर्ष सायकिल से ग्यारह किलोमीटर जाकर उसी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में निशुल्क काम करते रहे। उन्हें वहाँ कोई मेहनताना तो ना मिला लेकिन, ज्ञान, अनुभव और आत्मविश्वास भरपूर मिला।
उन्होंने अपनी खेती में एक हजार वर्ग मीटर पर पोलीहॉउस बनानेकी और फूलोंकी खेती करने की बात ठान ली। लेकिन अब बात रुपयोंपर अटक गई। बैंक को साढ़े बारह लाख का कर्ज माँगा तो उन्होंने छह महीने दौड़ाया। कभी एक कागज़ मंगवाते तो कभी दूसरा। जब ज्ञानेश्वर दूसरा कागज़ लाते तो पता चलता की पहलेवाला कहीं खो गया है। फिर उसे लाना होता। उनके जैसे कई किसानों के संग इस तरह बैंकोंमें अपराधी की तरह बर्ताव होता। साढ़े बारह लाख के प्रोजेक्ट हेतु उन्हें पूरे पच्चीस हजार रुपये इकठ्ठा कर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को देने पड़े। वह राशि उस समय ज्ञानेश्वर के लिए काफी बड़ी थी। वे बताते हैं, -‘ लम्बे इंतजार, कई फॉलो अप और परेशानी के बाद आखिर उसी बैंक के एक बड़े साहब की वजह से मेरा कर्ज मंजूर हो गया। उनके मातहत ने मेरा निवेदन अस्वीकार कर दिया था लेकिन वो बड़े साहब पॉजिटिव्ह व्यक्ति थे। उन्होंने मुझपर विश्वास किया और भरोसा जताया। मैंने देखा है, कि सरकारी तंत्र में केवल बारह प्रतिशत लोग ऐसे पॉजिटिव्ह होते हैं। शेष अठ्यासी प्रतिशत लोग निगेटिव्ह होते हैं। और इन सबको हर महीने पगार मिलती है।’
डायरेक्ट मार्केटिंग से कृषि व्यवसाय में सफलता
वर्ष १९९९ में बोडके पॉलीहॉउस द्वारा कारनेशन्स तथा गुलाब जैसे डेकोरेटिव्ह फुलोंका उत्पादन करने लगे। वे बताते हैं,-‘आरम्भ से ही मेरे परिवार को मेरी योजना पर विश्वास नहीं था। उन्हें लगता कि लागत रकम की वसूली ना हो सकेगी। बैंक कर्ज के चलते खेती की नीलामी होने का भय सबको सताता रहता। हम सब उस प्रोजेक्ट पर काफी मेहनत कर रहे थे। सामान्यतौरपर जब फूलोंकी फसल आती है तब कहीं लोग उठकर मार्केटिंग शुरू करते हैं। इस से आखिर उन्हें फ़ूलोंको स्थानिक बाजार में देना पड़ता है। मैंने सीजन के एक माह पूर्व ही मार्केटिंग की शुरुआत कर दी। डेकोरेटर्स और होटलोंसे टाई अप किया। मुंबई और पुणे के फ्लॉवर मार्केट्स में मांग से ज्यादा आपूर्ति थी।’
‘मुझे एक अफसर ने अपने फूलोंके सैम्पल्स दिल्ली भेजने की सलाह दी। मुझे कुछ फोन नंबर्स दिए। मैं उसके पूर्व न दिल्ली गया था और ना ही मैंने ट्रेन की यात्रा की थी। लेकिन, मैंने सैम्पल्स ट्रेन से भिजवा दिए। वहाँ वे पसंद आये और मुझे अग्रिम राशि की ऑफर दी गई। इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। प्रती फूल मेरा खर्च एक रुपया छयासी पैसे था और मुझे छह रुपये बीस पैसे मिलने लगे। तमाम चेक मेरे बैंक अकाउंट में जमा होने लगे। एक वर्ष बाद एक मजेदार घटना हुई। बैंक मैनेजर साहब मेरे घर आए और उन्होंने मेरे पिता से मिलने की इच्छा जताई। मेरे पिता को लगा, कि शायद वो भारी भरकम बैंक कर्ज के वापस भुगतान के बारेमें बात करेंगे और शायद वह समय आ गया है, कि हम सब हमारे छोटे से खेत को खोने जा रहे हैं। यही सोच कर, मेरे पिता बाहर नहीं आए। इस पर बैंक मैनेजर स्वयं भीतर आए। उन्होंने मेरे पिता के पैर छुए, उन्हें मिठाई खिलाई और सबको बधाइयां देते हुए बताया, कि मैंने केवल एक वर्ष में कर्ज की पूरी रकम बैंक को लौटाकर एक क्रान्ति कर दी है। ऐसा पहली बार हुआ है। वाकई, वह एक क्रान्ति का आरम्भ था।’
‘वर्ष २००४ में, कई लोगोंने ऐसे ही फूलोंकी पैदावार की और मेरी तरह दिल्ली भेजना शुरू किया। फिर हमने इसमें एक परिवर्तन किया। National Bank for Agriculture & Rural Development ‘नाबार्ड’ की सहायता से हम ग्यारह किसान साथ आये और ‘अभिनव फार्मर्स क्लब’ की शुरुआत की। तमाम काम आपस में बाँट लिए। अच्छे दामोंके चलते हमारा ग्रुप ३०५ सदस्योंतक बढ़ा। हमारी सामूहिक सफलता के चलते हमने ३०० ‘Maruti-800’ कारें खरीदी। ‘नाबार्ड’ का हाई टेक फार्मिंग के लिए अवार्ड भी हमें मिला। हमने अपने लिए घर भी बनाए।’
‘किन्तु, वर्ष के अंत में फूलों के दाम तेजी से निचे गिरे। हम में से कई लोग ग्रुप से बाहर निकले और हमारे ग्रुप की सदस्य संख्या २३ रह गई। यह वही समय था जब चीन से प्लास्टिक के सस्ते फूलों की आयात शुरू हुई थी। ये फूल सस्ते तो थे ही लेकिन वर्षों तक वैसे ही रहते। हमने समय के बदलाव को देखते हुए स्वयं बदलने का निश्चय किया और फ्लोरीकल्चर को अलविदा कहा। फलोत्पादन के दौरान हमने काफी हानिकारक रसायन अर्थात केमिकल्स का प्रयोग किया था। लेकिन, अब हम एक बूँद भी रसायन का उपयोग करना नहीं चाहते थे।’
वर्ष २००४ में आई टी पार्क के लिए जब मान गाँव की जमीनें महाराष्ट्र सरकार अधिग्रहित कर रही थी तब इन्ही ज्ञानेश्वर बोडके के नेतृत्व में किसानोंने अपनी जमीनोंको बचाने की लड़ाई लड़ी थी। ज्ञानेश्वर बताते हैं, -‘ राज्य सरकारकी महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एम आई डी सी ) को हमने कह दिया -आप लोग हमारी ३२०० एकड़ जमीनें ले चुके हैं। अब ये १२०० एकड़ जमीं तो हमारे लिए छोड़ दो। हम इस पर खेती करेंगे और आप के आई टी पार्क में जो पांच लाख लोग आएँगे उनका पेट भरेंगे। फिर हमारी जमीनोंके करोड़ रुपये दाम मिलने लगे तब भी हमने जमीनें नहीं दी। आज उन्हीं जमीनोंपर मेहनत कर गाँव के युवा औरोंको बेहतर सब्जी, अनाज दे रहे हैं और संपन्न हो रहे हैं।’
‘ठीक उसी समय कई मॉल्स भी देखे जाने लगे थे। हमारे देश में एक विडंबना है। यहां खाने की सब्जियां और फल आपको फुटपाथ पर मिल जाएंगे और पैरों में पहनने के लिए जुते या चप्पल एयर कंडिशन्ड शो रूम्स में मिलेंगे। यहां विदेशी फैशनेबल सब्जियां देसी सब्जियों की तुलना में दस गुना अधिक दाम पाती हैं। ऐसे ही एक दिन हमारी बात मैगनेट हायपर मार्केट्स के श्री योगेश शाह से हुई । उन्होंने हमसे रसायनों के प्रयोग से मुक्त ब्रोकोली और चायनीज गोभी जैसे विदेशी सब्जियों की मांग की। तब वे बेंगलुरु से ऑर्गेनिक विदेशी सब्जियां बुलवा रहे थे।’
‘उन्हें एयर किराया ही प्रती किलो पच्चीस रुपये देना पड़ता था। उलटे, हमारी ऑर्गेनिक विदेशी सब्जियोंकी लागत मूल्य मात्र बारह रुपये प्रती किलो थी। पचपन हजार रुपयों के अधिकतम लागत मूल्य पर हमें दो लाख चालीस हजार की आमदनी होने लगी थी। हमने आपूर्ति शुरू की । किन्तु, फिर पहले जैसे ही हुआ। हमारी सफलता हमने सब को बताई और लोगोने ठीक वैसे ही करना शुरू किया। जब हमने हमारा चेरी टोमेटो लंदन भेजा तो कई लोग भी ठीक वैसे ही करने लगे। जाहिर है, ऐसी बातोंसे डिमांड और सप्लाई तंत्र प्रभावित हो जाता है और सभी का नुकसान होता है। इस के चलते हम फिर दोबारा सोचने को विवश हुए और हमने फूलप्रूफ यंत्रणा के तौरपर एकात्मिक खेती (इंटीग्रेटेड फार्मिंग) की ओर जानेका निर्णय लिया। मसलन, आप एक साथ पच्चीस सब्जियां उगाते हैं। यदि दो तीन सब्जियोंके दाम गिर भी जाएँ तो शेष सब्जियां इस बात की पुख्ता व्यवस्था करती हैं, कि हमें हानी ना हो। हमने बीस देसी और चार या पांच विदेशी सब्जियां उगाने का तय किया। लोगोंको हमेशा सब्जियां खरीदनी होती हैं। उन्हें सब्जियोंके साथ साथ फल, अनाज और दूध भी चाहिए होता है। हम जान गए थे, कि इन चार चीजोंकी मांग हमेशा रहेगी।’
कंट्रोल्ड फार्मिंग और पॉलीहॉउस क्या है ? क्या है ‘अभिनव’ मॉडल ?
पारंपरिक खेती की तुलना में कंट्रोल्ड फार्मिंग या पॉली हाऊस के लाभ गिनाते हुए ज्ञानेश्वर बोडके कहते हैं,-‘यह एक सादा और सीधा तरीका है। शेड हाउस के जरिये कंट्रोल्ड फार्मिंग करेंगे तो वह आपकी फसल की प्रकृति की ज्यादतियोंसे रक्षा करेगा। मतलब, बाढ़, सूखा, ओले इत्यादी। ‘यदि आप खुले में खेती याने ओपन फार्मिंग करते हो तो भारी बारिश, अतिवृष्टी , ओले, तेज हवा आदी में आपकी लागत तबाह हो जाती है। इस से किसान तबाही की ओर जाता है।’
‘कर्ज बढ़ता है और जान पर बन जाती है। खुले की खेती कई बार ज्यादा महँगी साबित होती है। एक हजार स्क्वेयर मिटर भूमि पर पॉलीहॉउस को तकरीबन सोलह लाख रुपये लागत आती है और शेड हॉउस को आठ लाख रुपये लगते हैं। इसमें सरकार चार लाख सबसीडी देती है। ऑल ओव्हर इंडिया में सबसीडी मिलना पक्का है। लेकिन, एक बार ये शुरू किया तो आपको हजार रुपये रोजाना मिलना लगभग तय है। बाकी शेष खेती से कुछ ना भी मिले तब भी इस एक हज़ार स्क्वायर मीटर जमीन से साल भर उसका घर चल सकता है। लोग सरकारी नौकरी पाने के लिए पच्चीस पचास लाख देने के लिए तैयार हो जाते हैं ये आपने भी सुना होगा। यहां सिर्फ आठ लाख रूपए की बात है। वह भी बैंक लोन मिलता है। सबसीडी है। हम में से हर किसीने थोड़ा थोड़ा ही सही इस तरह कंट्रोल्ड फार्मिंग करनी चाहिए।’
‘इसके अलावा आपको और लाभ भी मिलता है। मान लीजिये प्रकृति की चपेट में आकर सब्जियोंके दाम आसमान छूते हैं तो बढे दामोंका लाभ भी पॉलीहॉउस के किसानोंको मिलेगा क्योंकि आपकी फसल सुरक्षित है। हमने तय कर लिया। एक एकड़ खेती में, २५ किस्म की सब्जियां, दस हजार या बारह हजार लीटर पानी की व्यवस्था, प्रती दिन दो घंटे बिजली आपूर्ति और पूरे परिवार की मेहनत हर दिन करीब चार घंटे। एक एकड़ भूमि को चार हिस्सोंमें विभाजित किया। प्रथम हिस्से में करीब बारह किस्म के ऑर्गेनिक तौरपर फल लिए, जिसमें पपई , सीताफल, मुसम्बी और अमरुद आदी शामिल थे। दूसरे हिस्सेमें विदेशी सब्जियां, तीसरे में दालें और चौथे भाग में पत्तीवाली सब्जियां।’
‘हमारे यहां विशेष रूप से ग्रेडिंग और पैकेजिंग का भी योग्य ध्यान रखा जाता है। फिर, ग्राहकों की माँग अनुसार सौ से भी अधिक डिलिव्हरी वैन्स में ये कृषि उपज उनके दरवाजे तक पहुँचती है। हमने प्रत्यक्ष बिक्री अर्थात डायरेक्ट मार्केटिंग के लिए हाउसिंग सोसायटीज से बात की। आज हमारे बिच हर एक सदस्य लगभग ३० किलो भारतीय सब्जियां, दस से बारह लीटर दूध, करीब पंद्रह किलो विदेशी सब्ज़ियां प्रती दिन बेचता है। अर्थात, रोजाना दो हजार से ढाई हजार की कमाई। प्रती माह सत्तर से अस्सी हजार रुपयों की आमदनी। इसी तरह गाय का दूध, गौ मूत्र और गोबर का भी व्यावसायिक उपयोग होता है। गौमूत्र का कारगर सैनिटाइजर के तौर पर उपयोग किया जाता है। गोबर पहले बायो गैस और फिर खाद में ऑर्गनिक खेती के लिए उपयोगी होता है। अब तो डॉक्टर्स ने भी हमारे आर्गेनिक कृषि उत्पाद अच्छी सेहत के लिए प्रिस्क्राइब करना शुरू कर दिया है। ‘अभिनव क्लब’ सफल है क्योंकि, इसी के चलते यहां कम पढ़े लिखे और कम खेतीवाले साधारण किसान भी एक सफल इंजिनियर की भाँती वार्षिक आय पाने लगे हैं।’
‘खेती किसानीमें सबसे बड़ी समस्या मजदूरोंकी भी है। आपको ग्रामपंचायत में पच्चीस लोग बातें करते मिल जाएंगे, लेकिन आपकी खेती पर काम करनेकेलिए मजदूर पानेमें दिक्कत होगी। लोगोंको आज कृषि के अलावा अन्य काम चाहिए। फिर हमने बचत गुटोंकी (सेल्फ हेल्प ग्रुप्स) महिलाओंको भी रोजगार दिया। करीब डेढ़ लाख किसान और बचत गुटोंकी ढाई लाख महिलायें -इनमें हर एक व्यक्ति तीन सौ रुपयोंसे तीन हजार रुपयोंतक आज हर दिन कमाता है। यह पूरा सिस्टम मिडलमेन याने दलालोंके बगैर चलता है। हम मानते हैं, कि किसानोंने अपने उत्पादोंका मार्केटिंग स्वयं के नाम और क़्वालिटी पर करना चाहिए, किसी बड़े कॉर्पोरेट का नाम या ब्रांड का सहारा लिए बगैर।’
आपकी राय में किसानों में और क्या बदलाव लाना होगा? यह पूछे जाने पर बोडके बताते हैं,- ‘जब किसान अपनी कृषि उपज का उत्पादन मूल्य तय करते हैं तब वे उसमें अपनी या अपने परिवार की मेहनत का पारिश्रमिक नहीं जोड़ते। उन्हें यह सिखाया गया ही नहीं। इसीलिए किसान गरीब हैं। उन्हें सिर्फ यह सिखाया गया है, कि कंपनियोंके बीज, खाद, रसायन और यंत्रसामग्री इनकी कीमत जोड़ो। क्योंकि, ये बड़ी कंपनियां हैं, उनके कंसल्टेंट्स सब ओर घुमते हैं। इस तरह कथित रूपसे किसानोंकेलिए काम करनेवाली ये कंपनियां और उनके लोग रईस होते चले गए और किसान ज्यादा से ज्यादा गरीब होता चला गया, ख़ुदकुशी करने लगा। ‘अभिनव क्लब’ के लिए मार्केट्स में कोई समस्या नहीं है क्योंकि, अच्छे उत्पादोंकेलिए कॉम्पिटिशन नहीं है। हमारी ऑर्गैनिक कृषि उपज केलिए अभी भी दस लाख ग्राहकोंकी प्रतीक्षा सूची है। एक बात और । भारत में ताजे फल और सब्जियोंकी मांग होती है प्रोसेस्ड फ़ूड की नहीं। दो- तीन वर्ष पूर्व हमारे ग्रुप ने ताजे आम के बाईस हजार बक्से बेच दिए थे लेकिन गाढ़े रस (पल्प) के सिर्फ बाइस पैक्स भी बेच नहीं सके थे।’
सबके लाभ की खेती।
‘क्या मंडियों में माल बेचने आए किसानों से कोई पूछता है, कि -इस माल के लिए आपकी लागत क्या थी ?’ बोडके सवाल उठाते हैं। फिर स्वयं जवाब देते हुए कहते हैं,-‘ नहीं पूछता। क्योंकि, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वहाँ किसी को इसकी चिंता नहीं है। यदि किसान इसी तरह मंडीयों के भरोसे रहे तो वे अन्नदाता हो कर भी कभी संपन्न नहीं बन सकेंगे। हमारे ग्राहकों को हमसे फल और सब्जियां उनके द्वार पर और बाजार की तुलना में अच्छे दाम पर, अच्छी तरह पैकेज्ड रूप में मिलती हैं। उनका वैद्यकीय महत्व, मेडिसिनल व्हेल्यु और रेसिपीज कव्हर पैक पर दी जाती हैं। मुंबई में अभी पांच सौ हाऊसिंग सोसायटीज प्रतीक्षा सूची में हैं। हमने न सिर्फ अपने ग्राहकों की आवश्यकताओ को समझा है बल्कि हम उनके साथ सम्बन्ध बनाए रखते हैं और उनके उत्सवों में सहभागी होते हैं। बाहर किसान संकट में होते हैं क्योंकि, उन्हें उचित मूल्य वाले बाजार की गारंटी नहीं होती। अब डायरेक्ट बेचने के अलावा कोई चारा नहीं है। इसके बगैर किसान बचाए नहीं जा सकेंगे। यदि ग्राहक किसानों से सीधे खरीदने लगें तो कोई किसान जान देने की बात सोचेगा तक नहीं। सौ फीसदी रसायन मुक्त ऑर्गैनिक उत्पाद लेने पर ग्राहकों का भी दवाइयों का खर्च कम होगा।’
किसानों को तीन दिवसीय प्रशिक्षण
बोडके बताते हैं, कि -‘अभिनव क्लब’ में किसानोंके बेटे बेटियां कृषि कामोंके सहायता कर अच्छी कमाई कर रहे हैं। ग्रेज्युएट लड़के-लडकियां तीन पहियोंकी गाडियोंसे कृषि माल पहुंचा रहे हैं। अब तक तो यही कहा जाता रहा है, कि देश की प्रगति हेतु कृषि से भार हटाकर हमें उद्योगोंकी ओर जाना होगा। मैं कहता हूँ, उद्योग कितनोंको रोजगार देंगे? कई लोग जो शेष रह जाते हैं उन सबको रोजगार देनेकी शक्ति कृषि क्षेत्र में हो सकती है।’
‘हम किसानी को फायदे की बनाकर तो देखें। इसलिए हमें हर ग्राम में यही मॉडल अपनाना होगा। जो लोग ‘अभिनव शेतकरी क्लब’ से जुड़ना चाहते हों वे अपना नाम पता भेजें, एक छोटासा शुल्क देकर तीन दिनोंके वर्कशॉप में सारी बारीकियां समझें और तैयार हो जाएं। हम उनके लिए ग्राहक ढूंढ़ने और उनकी समस्याएं हल करने केलिए उन्हें मार्गदर्शन करते हैं। वो चाहें उत्तर प्रदेश के हों, गुजरात या राजस्थान के हमें संपर्क करें। हम उन्हें ट्रेनिंग देंगे। कैसे उगाना, बारिश या सर्दी या गर्मी में क्या करना ये सब बताते हैं। इसमें मार्केटिंग भी सिखाएंगे जो आज खेती में सबसे अहम् बात है। ट्रेनिंग में हम उन्हें रुपया कमाना सिखाते हैं और रूपया बचाना भी सिखाते हैं। जो कमाया और बचाया वही उनका लाभ- मुनाफा है। हम कंट्रोल्ड फार्मिंग करते हैं। कितनी भी प्राकृतिक आपदा आये, तब भी हमारे किसान के घर रोजाना पांच सौ से हज़ार रुपये आएगा यह तय है। ट्रेनिंग के बाद वो अभिनव ग्रुप में शामिल हो जाएंगे। हमें जो इंक्वायरीज आएंगी हम उनतक पास ऑन करेंगे।’
I am a senior journalist. Have reported and edited in print, tv & web, in English, Hindi & Marathi for almost three decades. Passionate about extraordinary positive works by people like you and me.