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#वंदे मातरम 150वीं वर्षगांठ: अमर राष्ट्रीय गीत का पूरा इतिहास

सभी भारतीयों के लिए एकता, बलिदान और भक्ति के उस शाश्वत संदेश को फिर से दोहराने का अवसर है, जो वंदे मातरम में समाहित है।

#वंदे मातरम 150वीं वर्षगांठ,अमर राष्ट्रीय गीत का पूरा इतिहास। इस साल, 7 नवंबर 2025 को भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम – जिसका आशय है “माँ, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ”- की 150वीं वर्षगाँठ है। यह रचना, अमर राष्‍ट्रगीत के रूप में स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्र निर्माताओं की अनगिनत पीढ़ियों को प्रेरित करती रही हैऔर यह भारत की राष्ट्रीय पहचान और सामूहिक भावना का चिरस्थायी प्रतीक है।’वंदे मातरम’ पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में 7 नवंबर 1875 को प्रकाशित हुई थी । बाद में, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे अपने अमर उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया, जो 1882 में प्रकाशित हुई ।

 

 

पुनरुत्थानवादी राष्ट्रवाद के लिए युद्धघोष

“वंदे मातरम” गीत भारत के स्‍वाधीनता संग्राम का प्रतीक बन गया, जो स्व-शासन की सामूहिक इच्छा तथा लोगों और उनकी मातृभूमि के बीच भावनात्मक जुड़ाव को समाहित करता है। यह गीत शुरू में स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलनों के दौरान लोकप्रिय हुआऔर जल्द ही क्षेत्रीय सीमाओं को पार करके राष्ट्रीय जागरण का गान बन गया।बंगाल की सड़कों से लेकर बॉम्बे के दिल और पंजाब के मैदानों तक, “वंदे मातरम” की गूंज औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में सुनाई देने लगी। इसे गाने पर रोक लगाने की ब्रिटिश कोशिशों ने इसके देशभक्ति से जुड़े महत्व को और बढ़ा दिया, और इसे एक ऐसी नैतिक शक्ति में बदल दिया जिसने जाति, धर्म और भाषा की परवाह किए बिना लोगों को एकजुट किया। नेताओं, छात्रों और क्रांतिकारियों ने इसके छंदों से प्रेरणा ली, और इसे राजनीतिक सभाओं, प्रदर्शनों और जेल जाने से पहले गाया जाने लगा। इस रचना ने न केवल विरोध के कामों को प्रेरित किया, बल्कि आंदोलन में सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक जोश भी भरा, जिससे भारत के स्‍वाधीनता संग्राम की राह के लिए भावनात्मक आधार तैयार हुआ।

 

पूरा इतिहास पढ़ें : http://pib.gov.in

 

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उन्नीसवीं सदी के आखिर और बीसवीं सदी की शुरुआत में “वंदे मातरम”  बढ़ते भारतीय राष्ट्रवाद का नारा बन गया।

  • 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम गाया था।
  • 1905 के उथल-पुथल वाले दिनों में,बंगाल में विभाजन विरोधी और स्वदेशी आंदोलन के दौरानवंदे मातरम गीतऔर नारे की अपील भी बहुत शक्तिशाली हो गई थी।
  • उसी साल भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में, ‘वंदे मातरम‘ गीत को पूरे भारत के अवसरों के लिए अपनाया गया।

 

अप्रैल 1906 मेंनए बने पूर्वी बंगाल प्रांत के बारीसाल में बंगाल प्रांतीय सम्मेलन के दौरानब्रिटिश हुक्‍मरानों  ने वंदे मातरम के सार्वजनिक नारे लगाने पर रोक लगा दी और आखिरकार सम्मेलन पर ही रोक लगा दी। आदेश की अवहेलना करते हुएप्रतिनिधियों ने नारा लगाना जारी रखा और उन्हें पुलिस के भारी दमन का सामना करना पड़ा।

 

मई 1907मेंलाहौर मेंयुवा प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने औपनिवेशिक आदेशों की अवहेलना करते हुए जुलूस निकाला और रावलपिंडी में स्वदेशी नेताओं की गिरफ्तारी की निंदा करने के लिए वंदे मातरम का नारा लगाया। इस प्रदर्शन को पुलिस के क्रूर दमन का सामना करना पड़ाफिर भी युवाओं द्वारा निडरता से नारे लगाना देश भर में फैल रही प्रतिरोध की बढ़ती भावना को दर्शाता है।

 

27 फरवरी 1908 कोतूतीकोरिन (तमिलनाडु) में कोरल मिल्स के लगभग हज़ार मज़दूर स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी के साथ एकजुटता दिखाते हुए और अधिकारियों की दमनकारी कार्रवाइयों के खिलाफ हड़ताल पर चले गए। वे देर रात तक सड़कों पर मार्च करते रहेविरोध और देशभक्ति के प्रतीक के तौर पर वंदे मातरम के नारे लगाते रहे।

 

जून 1908 मेंलोकमान्य तिलक के मुकदमे की सुनवाई के दौरान हज़ारों लोग बॉम्बे पुलिस कोर्ट के बाहर जमा हुए और वंदे मातरम का गान करते हुए एकजुटता प्रदर्शित की। बाद में21 जून 1914 कोतिलक के रिहा होने पर पुणे में उनका ज़ोरदार स्वागत हुआऔर उनके स्‍थान ग्रहन करने के काफी देर बाद तक भीड़ वंदे मातरम के नारे लगाती रही।

 

 

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विदेशों में भारतीय क्रांतिकारियों पर प्रभाव

  • 1907 मेंमैडम भीकाजी कामा ने स्टटगार्टबर्लिन में पहली बार भारत के बाहर तिरंगा झंडा फहराया। झंडे पर वंदे मातरम‘ लिखा हुआ था।
  • 17 अगस्त  1909 कोजब मदन लाल ढींगरा को इंग्लैंड में फांसी दी गईतो फांसी पर चढ़ने से पहले उनके आखिरी शब्द थे “बंदे मातरम।”
  • 1909 मेंपेरिस में भारतीय देशभक्तों ने जिनेवा से बंदे मातरम‘ नामक एक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
  • अक्टूबर 1912 मेंजब गोपाल कृष्ण गोखले केप टाउनदक्षिण अफ्रीका पहुंचेतो उनका स्वागत वंदे मातरम‘ के नारे लगाते लोगों के एक बड़े जुलूस के साथ किया गया।

 

राष्ट्रीय स्थिति

संविधान सभा में जन गण मन और वंदे मातरम दोनों को राष्ट्रीय प्रतीकों के रूप में अपनाने पर पूर्ण सहमति थी और इस मुद्दे पर कोई बहस नहीं हुई। 24 जनवरी 1950 को, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा को संबोधित करते हुए कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण, वंदे मातरम को राष्ट्रगान जन गण मन के समान दर्जा दिया जाना चाहिए और समान रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा,

 

“एकमामलाहैजिसपरचर्चाहोनीबाकीहै, वह है राष्‍ट्र गान का सवाल। एक समय सोचा गया था कि यह मामला सदन के सामने लाया जाए और सदन एक प्रस्ताव पास करके इस पर फैसला ले। लेकिन ऐसा महसूस हुआ कि प्रस्ताव के ज़रिए औप‍चारिक फैसला लेने के बजाय, बेहतर होगा कि मैं राष्‍ट्र गान के बारे में एक बयान दूं। इसलिए मैं यह बयान दे रहा हूं।

 

जन गण मन नाम के शब्दों और संगीत से बनी रचना भारत का राष्ट्रगान है, जिसमें सरकार ज़रूरत पड़ने पर शब्दों में बदलाव कर सकती है; और वंदे मातरम गीत, जिसने भारत के स्‍वाधीनता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, उसे जन गण मन के बराबर सम्मान दिया जाएगा और उसका दर्जा भी उसके बराबर होगा। (तालियां)। मुझे आशा है कि इससे सदस्य संतुष्ट होंगे।”

 

उनके बयान को अपनाया गया और रवींद्रनाथ टैगोर के जन-गण-मन को स्‍वतंत्र भारत का राष्ट्रगान और बंकिम के वंदे मातरम को जन-गण-मन के बराबर दर्जा देते हुए राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया।

 

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#वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का जश्न मनाना

जब देश वंदे मातरम के 150साल पूरे होने का जश्‍न मना रहा हैतो इस गीत की एकताविरोध और राष्ट्रीय गौरव की स्थायी विरासत का सम्मान करने की कोशिश में पूरे भारत में यादगार गतिविधियाँ  आयोजित की जा रही हैं। संस्थानसांस्कृतिक संगठन और शैक्षणिक केंद्र गाने के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को फिर से याद करने के लिए सेमिनारप्रदर्शनियांसंगीत प्रस्‍तुतियाँ और सार्वजनिक पाठ आयोजित कर रहे हैं।

 

भारत सरकार इसे चार चरणों में मनाएगी।

 

कुछ गतिविधियाँनिम्‍नलिखित हैं।

7 नवंबर 2025 को

  • इस स्मरणोत्सव का दिल्ली (इंदिरा गांधी स्टेडियम) में राष्ट्रीय स्तर का उद्घाटन कार्यक्रम होगा।
  • 7 नवंबर को देश भर में तहसील स्तर तक वीआईपीकार्यक्रम होंगे जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे।
  • राष्ट्रीय कार्यक्रम में एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया जाएगा।
  • वंदे मातरम के इतिहास पर एक प्रदर्शनी लगाई जाएगीऔर एक लघु फिल्म दिखाई जाएगी।
  • हर सरकारी कार्यक्रम में डाक टिकट और सिक्का जारी होने की फिल्में दिखाई जाएंगी।
  • अभियान की वेबसाइट पर कार्यक्रमों की तस्वीरें और वीडियो अपलोड किए जाएंगे।
  • राष्ट्रीय स्तर परकार्यक्रम में देश भर के जाने-माने गायक वंदे मातरम के अलग-अलग रूप पेश करेंगे।

 

साल भर चलने वाली गतिविधियाँ

  • आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विशेष कार्यक्रम और एफएम रेडियो अभियान चलाया जाएगा।
  • पीआईबीटियर 2 और 3 शहरों में वंदे मातरम पर पैनल चर्चा और संवाद आयोजित करेगा।
  • दुनिया भर में सभी भारतीय मिशनों और कार्यालयों में वंदे मातरम की भावना को समर्पित एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाएगा।
  • वंदे मातरम की भावना को समर्पित एक वैश्विक संगीत समारोह आयोजित किया जाएगा।
  • वंदे मातरम:धरती माँ को सलाम – पेड़ लगाने के अभियान आयोजित किए जाएंगे।
  • राजमार्गों पर देशभक्ति से जुड़े चित्र बनाए और प्रदर्शित किए जाएंगे।
  • ऑडियो संदेश और विशेष उद्घोषणाएँ की जाएंगी। रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों पर एलईडीडिस्प्ले पर वंदे मातरम के बारे में जानकारी दिखाई जाएगी।

 

विशेष गतिविधियाँ

  • वंदे मातरम के अलग-अलग पहलुओं, बंकिम चंद्र चटर्जी की जीवन गाथा, स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम की भूमिका और भारत के इतिहास पर 1-1 मिनट की 25 फिल्में बनाई जाएंगी, और सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक पहुँचायी जाएंगी।
  • देशभक्ति की भावना को सही दिशा देने के लिए, वंदे मातरम अभियान और हर घर तिरंगा अभियान एक साथ मनाए जाएंगे।

ये पहल न सिर्फ़ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की कालजयी रचना को श्रद्धांजलि देती हैंबल्कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पीढ़ियों को प्रेरित करने में इसकी भूमिका को भी दिखाती हैं। इन समारोहों  के ज़रिएवंदे मातरम की भावना को आज के भारत के संदर्भ में नए सिरे से समझाया जा रहा है – जो देश के गौरवशाली अतीत को उसके एकजुटआत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भविष्य की आकांक्षाओं से जोड़ती है।

 

निष्‍कर्ष

वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का यह जश्न भारत की राष्ट्रीय पहचान के विकास में इस गीत के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दिखाता है। उन्नीसवीं सदी के आखिर के बौद्धिक और साहित्यिक माहौल से निकला वंदे मातरम अपनी साहित्यिक जड़ों से आगे बढ़कर उपनिवेशवाद विरोधी प्रतिरोध और सामूहिक आकांक्षा का शक्तिशाली प्रतीक बन गया। यह आयोजन न केवल बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के विज़न की स्थायी प्रासंगिकता की पुष्टि करता है, बल्कि आधुनिक भारत में राष्ट्रवाद, एकता और सांस्कृतिक आत्म-जागरूकता के विमर्श को आकार देने में इस गीत की भूमिका के बारे में नए सिरे से सोचने के लिए भी प्रेरित करता है।

 

संदर्भ: http://x.com

पत्र सूचना कार्यालय :
पीआईबी आर्काइव

https://www.pib.gov.in

अन्य पोस्ट के लिए आगे पढ़ें : http://indiainput.com

 

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