मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ : सरहदों के पार गूंजती एक अमर आवाज
शास्त्रीय संगीत और सुरीली गायिकी का अनूठा संगम
मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ : सरहदों के पार गूंजती एक अमर आवाज। भारतीय उपमहाद्वीप के संगीत इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो समय की धूल में धुंधले नहीं पड़ते, बल्कि और निखरते जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है ‘मल्लिका-ए-तरन्नुम’ नूरजहाँ का। उनकी आवाज़ केवल मनोरंजन का साधन नहीं थी, बल्कि वह एक सांस्कृतिक पुल थी जिसने भारत और पाकिस्तान के दिलों को संगीत के धागे से जोड़े रखा।
डॉ. नम्रता मिश्रा तिवारी द्वारा मुख्य संपादक http://indiainput.com
Enjoy this and have a good day ♥️ pic.twitter.com/GZymX5qh9Y
— MrsG (@Marvellous_MrsG) December 19, 2025
बॉलीवुड का स्वर्ण युग और नूरजहाँ
नूरजहाँ, जिनका असली नाम अल्लाह राखी वसाई था, ने अपने करियर की शुरुआत 1930 के दशक में एक बाल कलाकार के रूप में की थी। जल्द ही वह ‘बेबी नूरजहाँ’ के नाम से मशहूर हो गईं। लेकिन उनकी असली पहचान 1940 के दशक में बनी जब उन्होंने बॉम्बे (मुंबई) के फिल्मी जगत पर राज करना शुरू किया। फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ के उनके गाने आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर हैं। “आवाज़ दे कहाँ है” और “जवाँ है मोहब्बत” जैसे गीतों ने उन्हें रातों-रात एक सुपरस्टार बना दिया। उनकी आवाज़ में वो खनक और गहराई थी जो सीधे रूह को छूती थी।
where melody meets longing, and Noor Jehan’s voice turns pain into poetry. Timeless, soulful, unforgettable 🎶✨
Good attempt, yet, there was a reason why she was called “Malika-e-Tarannum” pic.twitter.com/Nx6R3J3YiY— Ashar Husain Kha’n-अशहर हुसैन खां (@Ashar_Lapidary) December 20, 2025
बँटवारा और एक विरासत
1947 में विभाजन के बाद नूरजहाँ पाकिस्तान चली गईं, जो भारतीय फिल्म जगत के लिए एक बड़ी क्षति थी। वहां उन्होंने अभिनय के साथ-साथ निर्देशन में भी कदम रखा। उनका प्रभाव इतना गहरा था कि लता मंगेशकर जैसी महान गायिका भी उन्हें अपना आदर्श मानती थीं। फ़ैज़ की नज़्म “मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग” को नूर जहाँ ने अमर बना दिया। आज भी उनके गाने सरहदों के दोनों तरफ उतने ही चाव से सुने जाते हैं।
मेरे सबसे पसंदीदा गानों में से एक, महान गायिका नूरजहां .all time favorite song, legendary singer noorjahan pic.twitter.com/vekYSMEM5o
— himanshu sajwan (@bulu_bab) December 21, 2024
एक आवाज़, दो मुल्क
नूरजहाँ के गायन की सबसे बड़ी विशेषता उनकी बहुमुखी प्रतिभा थी। उन्होंने शास्त्रीय संगीत, गज़ल और लोक गीतों को एक ही सहजता से गाया। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म “मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग” को जब नूर जहाँ ने अपनी आवाज़ दी, तो वह न केवल एक गीत बना बल्कि एक अमर रचना हो गई। संगीत के दिग्गजों का मानना है कि उनकी आवाज़ की रेंज इतनी व्यापक थी कि वह ऊंचे और नीचे दोनों सुरों में एक सी मिठास बनाए रखती थीं।
Madam Noorjahan was a eternal playback singer and actress 1930 – 1990,she was renowned as one of the most influential singers of South Asia. She holds the record for having given voice to the largest number of film songs,mostly in punjabi language.#پنجاب_رنگ pic.twitter.com/Ros6SWcjoD
— Momi Na ,, ਮੋਮੀਨਾ (@MomiNa161) July 10, 2020
लता मंगेशकर की आदर्श
नूर जहाँ का प्रभाव इतना गहरा था कि लता मंगेशकर जैसी महान गायिका भी उन्हें अपना आदर्श मानती थीं। आज भी उनके गाने सरहदों के दोनों तरफ उतने ही चाव से सुने जाते हैं। वे वास्तव में एक ऐसी मल्लिका थीं जिन्होंने अपनी आवाज़ के साम्राज्य को कभी बँटने नहीं दिया।
Dukhiyaan aankhein dhund rahi hai wahin pyaar ki baate……#NoorJahan #Queen #Madam #Singer #HappyBirthday https://t.co/frHK16BhQZ pic.twitter.com/NbiE4LpimY
— Mona (@Funkaar1977) September 21, 2020
शास्त्रीय संगीत
नूरजहाँ की गायकी की सबसे बड़ी शक्ति उनका शास्त्रीय संगीत पर जबरदस्त अधिकार था। उन्होंने पटियाला घराने के उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब से संगीत की बारीकियां सीखी थीं, जिसका प्रभाव उनके हर गीत में स्पष्ट झलकता था। उनकी आवाज़ में वो ‘हरकत’ और ‘मुरकी’ थी जो केवल कठिन रियाज़ से ही आती है।
वे जटिल से जटिल रागों को फिल्मी गीतों के माध्यम से आम जनता तक इतनी सरलता से पहुँचाती थीं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था। चाहे वो ठुमरी हो, दादरा हो या कोई कठिन गज़ल, नूरजहाँ ने हर विधा में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
Remembering
Actress Singer NoorJahan
On her death anniversaryAwaz De Kahan Hai
From
Anmol Ghadi (1946)#oldhindisongs#musiclovers#musiclover #hindifilmmusic#filmmusic #filmmusiclover#NoorJahan#hindisong#moviesong #bollywoodsonghttps://t.co/wmiIGMK5qP— rohitkumarparmar (@rohitkparmar) December 23, 2024
उनकी अदायगी में शास्त्रीय अनुशासन और सुरीलेपन का ऐसा बेजोड़ मेल था कि बड़े-बड़े संगीत मार्तंड भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे। यही कारण है कि उनके जाने के दशकों बाद भी उनकी गायकी संगीत के विद्यार्थियों के लिए एक पाठशाला की तरह है।
SOURCE : http://wikipedia
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