Gaukriti इस गौकृति कागज से पौधे उग आते हैं।
भारत से आई नई ऑर्गेनिक पेपर तकनीक जो माटीसे मिलकर स्वयं पौधे और पेड़ देती है ! इस पेपर केलिए पेड़ भी नहीं काटने पड़ते । ऐसी तकनीक जो पेड़, पर्यावरण, जलवायु की रक्षा हेतु समय की आवश्यकता है ।
Gaukriti भारत से आई नई ऑर्गेनिक पेपर तकनीक है जो माटीसे मिलकर स्वयं पौधे और पेड़ देती है! इंडिया इनपुट ने बात की इसके अविष्कारक श्री भीमराज शर्मा से।
इंडिया इनपुट रिसर्च डेस्क द्वारा ।
क्या विडम्बना है देखिये। जिन कागज पर हम पर्यावरण संरक्षण के बड़े बड़े लच्छेदार ज्ञानवर्धक लेख छाप देते हैं, स्लोगन छापते हैं, उन्हे बनाने के लिए हम सैंकड़ों हजारों पेड़ काटते हैं। और जब इस अंतर्विरोध पर सवाल उठते हैं तो हम पूछते हैं कि,-‘ तो क्या करें? मजबूरी है, पेपर चाहिए तो पेड़ काटने ही पड़ेंगे । और विकल्प क्या है?’
तो लिजिए, मजबूरी वाली बात अब नहीं रही ।जयपुर के भीमराज शर्मा जी और उनकी संस्था ‘ गौकृति’ ने इसका संभवतः सबसे बेहतर ऑर्गेनिक विकल्प ढूंढ निकाला है। इसमें पेपर मिलोंके जैसा न पेडोंका उपयोग होता है, ना खतरनाक रसायनोंका ।
Gaukriti: क्या है इस कागज में ?
सबसे बड़ी बात यह, कि इस कागज के उत्पादन में पेड़ों का लगदा नहीं बल्कि, उपयोग किया जाता है गाय का गोबर, गौमूत्र, और कपड़ा मिलोंमे शेष बचे कपडे के टुकडोंको । ना कोई रसायन ना कोई अहितकारक प्रक्रिया। आम तौर पर ये तीनों वेस्ट अर्थात निरूपयोगी समझे जाते हैं। उनको ठिकाने लगाना परेशानी की बात मानी जाती है। लेकिन, इन कथित बेकाम की वस्तुओं से हमें अब मूल्यवान कागज प्राप्त हो रहा है।
एक बात और। आम तौर पर पेपर जब बेकार, बेकाम का हो जाए तो उसे कूड़े दान में फेंक दिया जाता है और कहीं न कहीं वह माटी तक पहुंच जाता है, जहां विघटन के दौरान इसके भीतर स्थित खतरनाक रसायन माटी को प्रदूषित करने लगते हैं। लेकिन, ऑर्गेनिक कागज में खतरनाक रसायन नहीं बल्कि कई प्रकार के उपजाऊ बीज होते हैं जिनमें से पौधे अंकुरित होने लगते हैं।
भीमराज शर्मा जी बताते हैं कि,-‘ऑर्गेनिक कागज से आपको भिन्न भिन्न बारह प्रकारके पौधे मिल सकते हैं। जैसे, तुलसी का पौधा मिल सकता है। गेंदा या अन्य छोटे पुष्पवाले पौधे, गाजर, गोभी, मेथी, टमाटर आदि सब्जियां, हर्बल पौधे भी मिल सकते हैं । इस ऑर्गेनिक कागज की यात्रा उसे देश के किसी भी कोने में ले जाए, भारी संभावना है कि उसके भीतर विद्यमान कोई न कोई बीज वहांके वातावरण, तापमान और माटी में अपना कमाल दिखायेगा ही । कुल मिलाकर बात ये है, कि यह कागज आपसे पेड़ मांगता नहीं अपितु आपको पेड़ पौधे सौंप जाता है , प्रकृति को आगे बढ़ाता है। इन कागजों की मोटाई नब्बे जी एस एम से चारसौ जी एस एम होती है ।’
Gaukriti: कैसे आई यह कल्पना ?
पचास वर्षीय भीमराज जी, पिछले बीस वर्षोंसे कागज की छपाई अर्थात प्रिंटिंग व्यवसाय से जुड़े हैं। यह ऑर्गेनिक पेपर की कल्पना उन्हे आई उनकी बेटी जागृति से जिन्होंने वर्ष २०१७ में एक दिन बात बात में पूछ लिया था, कि क्या ऐसा कुछ किया जा सकता है जिसमें एकदम नए प्रकारसे पर्यावरण संरक्षक कागज का उत्पादन किया जाए। यह सुनते ही, भीमराज शर्मा सोचने लगे । फिर कुछ गोबर और कपड़ा टुकड़े साथ लिए अपने दोस्त की कार्यशाला की ओर चल दिए । आज जागृति डिजाइन की छात्रा हैं और उनके पापा इस ऑर्गेनिक पेपर को पेटेंट हेतु पंजीकृत करा चुके हैं । अब इस तकनीक से बनी ऑर्गेनिक राखियां और होलिकी किट की मांग भी बढ़ रही है ।
Gaukriti: ऐसा पेपर जिसे आप खा सकते हैं ।
जी हां । शर्मा जी की एक चुनौती भी सुन लिजिए। वे कहते हैं, -‘ ये ऐसा कागज़ है जिसे आप खा लेंगे तो बीमार नहीं होंगे । मैं ये कागज सबके सामने खा सकता हूं। लेकिन क्या आप मिल से बना रासायनिक कागज इतने ही विश्वास से खा सकते हैं?’
Gaukriti: विदेशों में भारतके ऑर्गेनिक पेपर का स्वागत ।
श्री भीमराज शर्मा के अनुसार, -‘इसमें विद्यमान बीज प्रती किलो पांच सौ रूपयोंसे पांच हजार रुपए तक उपलब्ध हैं। लिहाजा, इसका उत्पादन मूल्य है, बीस या तीस इंच की शीट के लिए पचास रूपए । वर्तमान में ये पेपर्स अधिकतर लिफाफे, शादी या अन्य कार्यक्रमोंके निमंत्रण , हैंड बैग आदी के निर्माण हेतु उपयोग में लाए जा रहे हैं। लेकिन इनका प्रयोग पेपर मिल के रासायनिक कागज की तरह होनमें कोई दिक्कत नहीं होगी। हमें अपनी सोच या कृतिमें बदलाव लाना होगा । इस पेपरको और उसके उत्पादोंको लेकर अमरिका स्थित हमारे ग्राहकोमें बड़ा कौतुहल है, अच्छी माँग भी है । क्योंकि अब समूचा विश्व जान चुका है कि वर्तमान पेपर मिल वाले रासायनिक कागज से हो रही हानी को ध्यान में रखकरसोचें तो उसका असली मूल्य काफी अधिक चुकाना होता है।’
वाकई डर तो है, कि कहीं हमारी आगामी पीढ़ियोंको उसका बेहद बड़ा मूल्य चुकाना न पड़ जाए। इस तुलना में ऑर्गेनिक पेपर को वरदान ही कहना होगा ।
गाय का सबसे अहम उत्पादन क्या है ?
शर्मा जी बताते हैं, -‘ परिवार में गौमाता की सेवा का संस्कार मिला । और यह भी ज्ञान हुआ कि यदि एक गाय की औसतन आयु पंद्रह वर्ष है तो वह अमूमन केवल पांच वर्ष तक दूध दे पाती है । जबकि गाय के जन्म से मृत्युतक हमें गोबर और गौमूत्र प्राप्त होते रहते हैं जिनका पर्यावरण, वैद्यकीय, कृषि आदि क्षेत्रोंमें अमूल्य महत्व है । गौमूत्र की वैद्यकीय चिकित्सामें हमेशा से अहमियत रही है । आज आधुनिक विज्ञान भी उसपर प्रयोग कर रहा है । गोबर अर्थात गौमय
ऑर्गेनिक खाद देता है, बायोगैस से ऊर्जा देता है । अब तो इस से बनाए गए माटी के दिए और फ्लॉवरपॉट्स भी लोकप्रिय हो चुके हैं। यदि हमें गाय की सच्ची अहमियत जाननी है तो इन उत्पादोंको अहम मानकर उसके लाभ स्विकारना होगा । मैने हमेशा से माना है कि गौमूत्र और गोबर (गौमय) से और भी संभावनाएं हो सकती हैं। हमारी संस्था ‘गौकृति’ इसी दिशा में सक्रिय हो चुकी है।’
रासायनिक और ऑर्गेनिक कागज में अंतर
‘गौकृति’ के श्री शर्मा कहते हैं, -एक अनुमान के अनुसार, चालीस फीसद पेड़ कटाई कागज के उत्पादन हेतु की जाती है। पेपर मिल से एक टन रासायनिक पेपर का उत्पादन पाने लगभग 20 पेडोंकी कटाई होती है। यह हर पेड़ लंबाई में लगभग 30 फीट और जाड़ी में 10 इंच होता है। इन पेडोंके विकास हेतु कितने लिटर पानी और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का उपयोग किया गया है, क्या यह सोचना आवश्यक नहीं है? इन पेडोंको पेपर उत्पादन के लिए काटकर हम उतना पानी और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जाया कर देते हैं।अब सोचने वाली बात ये है कि हम प्रतिदिन मिल का लाखों टन पेपर उपयोग में ला रहे हैं। अर्थात, प्रतिदिन पर्यावरण और प्रकृति की भीषण हानी । अब विडम्बना देखिए, कि हम इसी रासायनिक कागज पर पर्यावरण संरक्षण के लेख, भाषण और घोषणाएं आदी छापते हैं । फिर कैसे होगा पर्यावरण संरक्षण? विश्व भर में हमें पर्यावरण संरक्षण का असली आरंभ इस ऑर्गेनिक कागज से करना होगा। क्योंकि इन के उत्पादन हेतु न कोई पेड़ कटता है और ना ही हानिकारक रसायन प्रयोग में लाए जाते हैं।
श्री भीमराज शर्मा बताते हैं कि, – आधुनिक समाज मानता था कि गोमय (गोबर), गौ मूत्र तथा निरूपयोगी कपड़े के टुकड़े किसी उपयोग के नहीं, बेकार हैं। हम इनसे ही करीब ७० उत्पादन बनाते हैं और सौ से अधिक प्रकार की राखियां भी बनाते हैं। भविष्य की प्रौद्योगिकी यही है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने लिखित रूपमें हमारे प्रयासोंकी प्रशंसा की है । यदि हम रासायनिक कागज से हो रही भीषण हानी का अंदाजा लगा सकते हैं और भविष्यकी पीढ़ीयोंको क्या सहन करना पड़ेगा इसका अंदाजा लगाएं तो हमें आज और अभी जागना होगा। आखिर कितने पेड़ कटने पर और कितने लिटर हानिकारक तत्व नदियों तथा माटी में छोड़ने पर हम जागेंगे?
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