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POSTCARD MAN: ग्रामीण मार्केटिंगके जादूगरसे मिलीये!

'ग्रामीण भारत में अवसरोंकी कमी नहीं है!' ये दावा हैं, श्री प्रदीप लोखंडे का! उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में वो कर दिखाया जो असंभव लगता था!!

Postcard man प्रदीप लोखंडे जिन्हें ‘पोस्ट कार्ड मैन’ और ‘ग्रामीण मार्केटिंग का जादूगर’ भी कहा गया है। उन्हें ये संबोधन मिलने के पिछे की कहानी बेहद संघर्ष पूर्ण और रोचक है। वे देश के तमाम  बीजनेस स्कूल, सारे आई आई एम, हार्वर्ड, सिंगापुर यूनिवर्सिटी आदी स्थानोंमें  निमंत्रित किए जाने पर छात्रों को संबोधित कर चुके हैं। वे भारत के पांच हजार से अधिक गाँव को स्वयं देख चुके हैं। भारत के तमाम बड़ी कंपनियोंके संग वे काम कर चुके हैं या कर रहे हैं। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के वे सलाहगार रहे हैं। भारत के ६७ हजार गाँवों के बारेमें जानकारी वे संग्रहित कर चुके हैं। 

संजय रमाकांत तिवारी

श्री प्रदीप लोखंडे  ने ग्रामीण क्षेत्र में वो कर दिखाया हैं, जो असंभव लगता था । उनके कामोंकी सिलसिलेवार जानकारी आपको चौंका देगी।

महाराष्ट्र के सातारा जिलेके वाई गांव में एक साधारण परिवार में जन्में  प्रदीप जी को माता पिता से अच्छे संस्कार मिले।  ग्रॅज्युएशन के बाद कुछ समय एक मल्टी नेशनल कंपनी के मार्केटिंग विभाग में नौकरी की । फिर कुछ समय कुछ व्यवसाय भी किए ।

इस दौर के बारे में वे बताते हैं, ‘देखा जाए तो आम तौर पर व्यवसाय में सफल होने के लिए ढेर सारे रुपए, उत्कृष्ट शिक्षा और बेहतर पारिवारिक पृष्ठभूमि की आवश्यकता महसूस होती है।  मेरे  पास ये तीनों नहीं थे । इसलिए मैने तय किया ऐसी राह चुनना, जिसपर कम लोग ही चलें हों ।’

लेकिन, १९९३ में उन्होंने सिटी बैंक के पूर्व अध्यक्ष गुरुशरण दास को सुना  और ग्रामीण क्षेत्रमें कार्य करनेका अपना निश्चय दृढ़ किया।

कड़े संघर्ष के तीन वर्षों बाद उन्हें सफलता मिलने लगी।

Postcard man के ‘रूरल रिलेशन्स’ की कहानी।

१९९३ एक बात है। प्रदीप जी  की सोच थी, कि भारत को यदि बेहतर बनाना है तो गाँवोंमें वही बेहतर दर्जेके उत्पाद उपलब्ध होने चाहिए जो शहरोंमें उपलब्ध होते हैं। भारतवर्ष के उन गाँवोंमें जाने का उन्होंने तय किया  जहां की लोकसंख्या दो हजार से अधिक है और नौ हजार तक है और जहां साप्ताहिक बाजार होता  है। आरम्भ महाराष्ट्र से करनेका तय हुआ।  महाराष्ट्र में ४७ हजार गाँव,  ३५७ तहसीलें और ३६ जिले थे। इनमे दो हजार से अधिक आबादी वाले ७१०० गाँव थे।  यहां साप्ताहिक बाजार हुआ करते थे।  साप्ताहिक बाजार में आसपास के गाँवोंके लोग भी आया करते हैं।  अर्थात आप इन साप्ताहिक बाज़ारोंमें जो उत्पाद, सेवायें, संवाद, कल्पना या जानकारी देंगे वो शेष सभी गांवोंमें पहुँच सकेंगी। देश की बात करें तो, भारत में ६ लाख ४९ हजार गाँव हैं। इनमें करीब १३ प्रतिशत गाँव ऐसे हैं जहां साप्ताहिक बाजार होता है। ये लगभग एक लाख गाँव हैं।

इसी से जुड़ी है वह दिलचस्प कहानी, कि कैसे महाराष्ट्र के गांवों का डेटा जुटाया गया।

प्रदीप जी कैसे बने ‘पोस्ट कार्ड मैन’?

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महाराष्ट्र के साप्ताहिक बाजार वाले सात हजार एक सौ गांवों की जानकारी एकत्रित कर उसके द्वारा मार्केटिंग करनेकी यह कल्पना थी। इतने गाँवों तक  पहुँचने का उस समय एक ही माध्यम संभव था, चिट्ठी अर्थात पोस्टकार्ड। उन्होंने अपनी पत्नी और पिता को मनाया और बीस हजार चिठ्ठियां लिखवा कर छः हज़ार सात सौ गांवों में भिजवाई। इनमें गांव से जुड़ी सामान्य जानकारी मांगी गई थी। इन हाथ से लिखे बीस हजार पत्रोंके उत्तर आए केवल अठरा।  लगभग सभी में उल्टा सवाल था, कि – ये सब पूछने वाले आप कौन हैं?

 

इतनी मेहनत के बाद यदि ऐसा रिप्लाई मिले तो कोई भी सामान्य व्यक्ति आसानी से निराश हो सकता है । लेकिन, प्रदीप जी कहते हैं, ‘ऐसे समय आपके भीतर के उद्योगी व्यक्ति (entrepreneur) ko जागृत होना जरूरी है। उसी समय मेरा टर्निंग पॉईंट आया।’

प्रदीप जी ने दोबारा अपने पिता और पत्नी को चिट्ठियां लिखनेके लिए मनाया और चूंकि दिवाली करीब थी, इस बार कोई किसी जानकारी की मांग ना करते हुए, सबको केवल दिवाली की शुभ कामनाएँ व्यक्त की गईं।

अबकी बार जवाब आए । बीस हजार पोस्ट कार्ड्स को आठ सौ अस्सी जवाब आए। सभी में प्रतिसाद स्वरुप दिवाली की शुभ कामनाएं थीं। इसके बाद पिछे मुडकर देखने की नौबत नहीं आई । आठ लाख से अधिक पोस्ट कार्ड से जवाब मिले । गौरव की बात है, कि इस अभिनव प्रयोग के सफल होनेपर उन्हे ‘पोस्टकार्ड मॅन’ यह नई पहचान मिली।

बेहद मेहनत से कई बार हजारों पोस्ट कार्ड भेजने के बाद उन्होंने गांवों की जानकारी का सफलता से संकलन किया और इसी से नया बिजनेस मॉडल बनानेका निश्चय किया ।

छह हजार सात सौ गांवोंका डेटा जुटाने में  तीन वर्ष लग गए । डेटा के लिए पांच लाख रुपयों की उम्मीद थी। दो बार प्रेजेंटेशन देनेके बाद टाटा टी से केवल पच्चीस हजार रुपए मिल सके। निराशा हुई । 3 सप्ताह बाद फिर फोन आया । इस बार फोन आया कि, ‘जानकारी अच्छी है लेकिन इसका उपयोग कर क्या कोई प्रोजेक्ट किया जा सकेगा ?’ प्रदीप जी ने इन गाँवोंसे सौ गाँव चुनें और वहाँ साप्ताहिक बाजार के दिन एक असिस्टेंट के साथ जाकर स्थानिक चायवाले से बात की। उसे उसकी कमाई के रुपए एडवांस में देकर उसके द्वारा लोगोंको निःशुल्क चाय पिलायी। इस प्रोजेक्ट के उन्हें उस समय तीन लाख रुपये मिले थे । फिर उसी वर्ष प्रॉक्टर एंड गैंबल से एक करोड़ रूपयोंका कॉन्ट्रैक्ट मिला । और फिर वापिस पीछे देखने की आवश्यकता नहीं पड़ी ।

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प्रदीप जी अब यह जान चुके थे, कि  इसी तरह के मार्केटिंग प्रोजेक्ट्स द्वारा ग्रामीण युवकोंको रोजगार भी दिया जा सकता है।  उन्होंने कॉर्पोरेट्स को भी समझा था और गाँव के आखिरी व्यक्ति को भी। इस तरह, दोनोंके बिच संपर्क का माध्यम बनाने का उन्होंने तय किया।  अब तक वे लगभग ६७ बड़े ब्रांड्स के साथ काम कर चुके हैं। वे बताते हैं, ‘कोई उत्पाद हमने बेचा नहीं। केवल ब्रांडिंग और प्रमोशन किया । शराब और उत्तेजक पदार्थोंका प्रमोशन नहीं किया।’

फलस्वरूप, ४९ हजार गाँव तथा उनमें बसने वाले करोड़ों लोगोंका डेटा बेस उनके कार्यालय में हैं।

स्कूलों में कम्प्यूटर्स ।

प्रदीप जी कहते हैं, ‘भारत की बात करेंगे तो आपको यहाँ का स्केल समझना होगा । यूरोप की आबादी २९ करोड़ है।  हमारे देश में पंद्रह करोड़ बच्चे प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनमें १० करोड़ ५० लाख बच्चोंको माध्यान्ह भोजन अर्थात ‘मिड डे मील’ दिया जाता है।  सार्वजनिक सहभागिता के माध्यम से उनकी टीम ने वर्ष २००९ तक हजारो सेकंड हैंड पी सी अर्थात यूज्ड कॉम्प्युटर्स जरूरतमंद ग्रामीण छात्र छात्राओं तक पहुंचाये ।  बच्चों को इस तरह कंप्यूटर्स सीखने का अवसर मिला और कई बचचोंके करियर में इसके बेहतर परिणाम हुए। बच्चोंद्वारा भेजी गई चिठ्ठियां इसकी गवाह हैं ।’

इस उपक्रम के तहत २८ हजार ३०० कंप्यूटर्स सात राज्यों के १८ हजार ३०० स्कूलोंमें पहुंचाए गए जहां शिक्षा हेतु कंप्यूटर्स नहीं पहुंच पाए थे।

अनोखा ग्रंथालय अभियान ।

प्रदीप जी ने सार्वजनिक सहभागिता से परिश्रमपूर्वक महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रोंके छात्र – छात्राओं के लिए पुस्तक उपलब्ध कराने और उन्हें  पढ़ने हेतु प्रेरित करने का अभियान  आरम्भ किया और उसे सफल बनाया। इसे विश्व का अबतक का सबसे बड़ा वाचन उपक्रम (reading initiative) कहा गया है।

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विज्ञान के हवाले से कहा जाता है, कि आठ से बारह वर्ष की आयु में जो आदतें बनती हैं (हैबिट फॉर्मिंग इयर्स) वे जीवन भर टिकती हैं, कायम रहती हैं । इसी आयु के बच्चोंको ध्यान में रखकर प्रदीप जी ने सपत्नीक महाराष्ट्र के  ग्रामीण क्षेत्रोंमें जाकर परिस्थिती का आकलन किया और  वाचनालय स्थापित किये हैं।

देश के हजारो स्कूलोंमें उनकी संस्था की लाइब्रेरी है।  महाराष्ट्र के अलावा तेलंगणा, आंध्र, गोवा, कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान में यह अभियान सफल हो चुका है।  इस अभियान के जरिये प्रदीप जी देश के ९४ हजार स्कूलोंतक पहुंचना चाहते हैं और वहाँ के छात्र छात्राओंको इन पुस्तकोंके द्वारा ज्ञान और जानकारी के अलावा उच्च मानवी मूल्यों तथा सद्गुणों का परिचय देना चाहते हैं ।

इस अभियान के तहत,  वे छात्रोंको निःशुल्क पुस्तक देते हैं। उस पुस्तक में प्रायजकोंके नाम और पते  सहित पोस्ट कार्ड होता है।  पुस्तक प्राप्त करने पर  छात्र को उस कार्ड के द्वारा प्रायोजक को यह सूचित करना होता है। ऐसा करने पर प्रदीप जी की संस्था को प्रायोजक  पुनः सहयोग कर पुस्तकें देते हैं।  इस प्रकार पारदर्शिता और फीडबैक युक्त व्यवस्था से डोनर्स और प्रायोजकोंको विश्वास होता है, कि उनके द्वारा दी गयी राशी का उचित उपयोग हुआ है। और वे लाभार्थी स्कूल तथा उन छात्र छात्राओं से प्रत्यक्ष जुड़ जाते हैं। अपने पारदर्शी सार्वजनिक सहभागिता मॉडल पर प्रदीप लोखंडे कहते हैं, ‘हम प्रायोजक और स्कूल तथा छात्रोंको जोड़कर बिंदु से बिंदु जोड़ रहे हैं । नए सामाजिक संबंध स्थापित कर रहे हैं।’

फीडबैक की यह प्रणाली इस जैसी स्वयंसेवी संस्थाओंमें विश्वास और दृढ़ बनाती है।  पुस्तक मिलने पर स्कूलें उनके प्रयोजकोंके नाम और पते पर दिए गए पोस्टकार्ड में  पुस्तक और उनके मूल्य सहित मिलने की सूचना देते हैं। हर पैतींसवे या चालीसवे पुस्तक में एक कार्ड होता है जिनमें प्रयोजका का नाम और पता लिखा होता है। पुस्तक  पढ़ने के बाद बच्चोंको उस कार्ड के द्वारा स्वयं  पुस्तक पढ़ने की जानकारी देनी होती है और पुस्तक से क्या प्रेरणा अथवा शिक्षा प्राप्त हुई वह लिखना होता है।  तीन लाख ७३ हजार  छात्र छात्राओं द्वारा लिखे पत्र इस अभूतपूर्व अभियान की सफलता के गवाह हैं।

इस  अभियान के  माध्यम से १८४० दिनोंमें  ५१७०  वाचनालय स्थापित  जा चुके हैं ।  १० लाख छात्रोंतक पहुंच सके हैं और लगभग छह करोड़ रुपए मूल्य की दस लाख किताबें वितरित की जा चुकी हैं । दस लाख अर्थात एक मिलियन छात्र छात्राओं ने इन पुस्तकोंका लाभ उठाया है।  इस योजना के तहत महाराष्ट्र के हर तहसीलमें ६ से १० वाचनालय खोले जा चुके हैं। २ से ८ हजार की आबादी वाले गाँवोंतक यह अभियान जा पहुंचा है।

डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा लिखित ‘अग्निपंख’, सुधा मूर्ति द्वारा लिखित पुस्तकें, स्थानिक भाषा में किसी  मूर्धन्य लेखक की बच्चोंके पढ़ने योग्य साहित्य कृति जैसे मराठी के पु. ल. देशपांडे द्वारा लिखित  प्रख्यात पुस्तक ‘बटाटया ची चाळ’, इसके अलावा सुनीता विलयम्स पर पुस्तक, नाट्य, कविता, विज्ञान, क्रीड़ा, आपत्ति व्यवस्थापन ऐसे विविध विषयोंपर पुस्तकोंका विचारपूर्वक संकलन कर १८२ पुस्तकोंका एक सेट बनाया।  हर वाचनालय की डोनर महिलाएँ हैं और वाचनालयोंकी मॉनिटर्स भी लड़कियाँ हैं।  हर वाचनालय में ऐसे पुस्तकोंके सेट्स हैं।

रूरल रिलेशन्स संस्था के प्रोफेशनल एटीट्यूड  के ये दो उदाहरण देखिए। तेरह स्कूलोंमें ग्रंथालय का मेंटेनेंस ठीक से नहीं हो रहा था इसलिए वहां के वाचनालय वापिस लिए गए। उधर, नाशिक और हैदराबाद के पुलिस स्टेशन्स में भी ग्रंथालयोंकी शुरुआत की गई। इसकी प्रशंसा हुई। इस तरह गांवों में छात्र छात्राओंमें वाचन संस्कृति का आरंभ किया गया। इस उपक्रम का नाम था Gyan Key.. अर्थात ज्ञान की चाबी । लक्ष्य था,  पढ़ो, लिखो और बोलो ।

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ऑनलाइन शिक्षा के लिए ‘यो मोबाईल’ ।

इसी तरह, वर्ष २०२० में कोविड लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण क्षैत्र के स्कूली बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा में सहायता हेतु उन्होंने yo mobile  इनिशिएटिव का आरंभ किया । लोगोंसे खुलकर आग्रह किया कि वे अपने इस्तेमाल हुये लेकिन सुस्थिती में वापरने योग्य एंड्रॉइड मोबाइल फोन बेचने या एक्सचेंज करने के बजाए उनके द्वारा सुझाए गए ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में जरुरतमंद छात्र छात्राओं की ऑनलाइन शिक्षा के लिए दें । इस यो मोबाईल उपक्रम के तहत इच्छुक मोबाइल फोन दाता को उनके पसंद के क्षेत्रमें स्कूल और जरूरतमंद छात्र का नाम दिया जाता । डोनर द्वारा भेजा गया मोबाईल फोन सेट योग्य जरूरत मंद तक पहुंचा है इस का पड़ताल करने की जिम्मेदारी प्रदीप जी की संस्था ने ली थी। पंद्रह हजार से अधिक छात्रों को आवश्यकता थी और उन्होंने मांग की थी । किंतु, १३०० बच्चोतक मोबाईल फोन सेट पहुंचाए जा सके ।

एक के बाद एक अभिनव कल्पनाओंको सफल करवाने के पीछे क्या राज है यह पूछे जाने पर प्रदीप जी कहते हैं, ‘इस देश के युवाओंकी सबसे बड़ी समस्या है नेगेटिविटी। नकारात्मकता। जिस से उन युवाओं और देश की हानि होती है। हालांकि, देश में काफी ऐसे तथ्य हैं जो पॉजीटिव अर्थात सकारात्मक हैं।’

उनका सपना है कि अगले बारह वर्षोंमें २०३२ तक देश में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं। उनका विश्वास है, कि ये शिक्षा और संवाद के माध्यम से हो सकता है।

ग्रामीण इलाकोंमे शिक्षा क्षेत्र में बदलाव

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प्रदीप लोखंडे कहते हैं, ‘यदि विश्व को बेहतर बनाना है तो एक ही तरीका है, शिक्षा। भारत में विश्व की सबसे बड़ी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था अर्थात एलिमेंट्री एजुकेशनल सिस्टम है।  दो तीन दशक पहले तक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने भारत के  ग्रामीण छात्रोंको दस पंद्रह किलोमीटर जाना होता था।  आज यह बदलाव हुआ है कि उन्हें प्राथमिक शिक्षा  डेढ़ किलोमीटर पर उपलब्ध है।   सेकेंडरी एजुकेशन तीन किलोमीटर पर है।  पंद्रह कोटी छात्रोंको प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध हो रही है।  लगभग हर घर में शिक्षा का महत्त्व पहुंचा है।’

‘गाँव की सड़क पर सब्जियाँ बेचने वाली वृद्ध दादी माँ को उनकी महत्वाकांक्षा के बारे में पूछिए।  वह बताएंगी, कि वे अपने बेटे या बेटी या  पोते -पोती या नाती -नातिनोंको खूब पढ़ाना चाहती हैं। यह बदलाव हुआ है जो ग्रामीण भारत के पॉजिटिव पहलू दर्शाता है।’

ग्रामीण इलाकोंमे संवाद क्षेत्र में बदलाव

‘ग्रामीण भारत में दूसरा बदलाव आया है संवाद अर्थात कम्युनिकेशन के क्षेत्र में।  भारत में आप कहीं भी जाइये आपको दूरदर्शन या केबल या डिश टी वी की कनेक्टिविटी का लाभ उठाते घर दिखाई देंगे। दूरदर्शन ९२ प्रतिशत और सैटेलाइट टी वी करीब पचपन प्रतिशत आबादी तक पहुँच चुका है। हर वर्ष पचास लाख घरोंपर नई डिश लगती है। इस डिश के माध्यमसे  ये घर वैश्विक समाज से जोड़े जाते हैं। और यदि कुछ शिक्षा और संवाद पहुंचे तो उस क्षेत्र में क्रय विक्रय और बेचनेवाले तथा ग्राहक यह व्यवस्था जड़ें फ़ैलाने लगती हैं, जिस से रोजगार सृजन तथा सम्पन्नता आती है । यही हमारी पूँजी है। इस कन्ज्युमेरिज्म का कॅपिटलाइजेशन करना होगा।’

ग्रामीण इलाकोंमे व्यवसाय के नए अवसर ।

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अपनी कल्पना को विस्तार से बताते हुए वे कहते हैं, ‘ग्रामीण भारत में अनुमानित पैसठ लाख दुकाने हैं। अर्थात, उन स्थानोंपर व्यवसाय है, लाभ है – इसीलिए ये दुकाने वहाँ पर कार्यरत हैं।  शिक्षा और संवाद के जरिये रोजगार और व्यवसाय के अवसर निर्माण हुए हैं। यहां मांग है इसलिए आपूर्ति होती है। ग्रामीण क्षेत्र का नागरिक या ग्राहक उत्पादन की मांग करता है इसलिए यह कहना होगा कि वो दुकानदार कंपनी तक पहुंचता है।  आप ग्रामीण भारत के किसी भी दूकान जाइये।  वहाँ कम से कम पांच उत्पादन आपको अवश्य मिलेंगे।  पारले – जी, कोलगेट, लाइफबॉय, पैराश्यूट ब्रांड कोकोनट ऑइल ये उत्पाद तो मिल ही जाएंगे।’

‘ये कम्पनियाँ  वहाँ नहीं गई बल्कि मांग पैदा होनेसे ये वस्तुएं उपलब्ध कराई गयीं। क्योंकि अब कुछ सम्पन्नता भी ग्रामीण इलाकोंमें आई है। किसान खेतोंमें ५२ प्रकार के उत्पाद या कमोडिटीज पैदा करता है। १९९६ से २०१६ इस दौरान इनका न्यूनतम मूल्य भी  दो सौ से दो हजार प्रतिशत बढ़ा है।  इसका अर्थ यह है की कुछ रुपये भी किसान के पास पहुँच रहे हैं।  पहले किसान केवल दो चीजोंपर अधिकतर खर्च किया करता था। भूमि और सोना।  लेकिन अब उसकी मांग बदली है और बढ़ी है।  उसे भी बेहतर लिव्हिंग स्टैंडर्ड्स चाहिए।  बेहतर चपलें चाहिए।  बेहतर कपडे चाहिए। मोटरसाइकिल चाहिए।  ग्रामीण ग्राहक भी वही खरीदता है जो शहरी ग्राहक लेते हैं। लेकिन, ग्रामीण ग्राहक कम मात्रा में, आवश्यक उतनाही लेता है। इस दृष्टी  जाए तो ग्रामीण ग्राहक न सिर्फ ये जानता है कि उसे क्या चाहिए बल्कि यह भी जानता है कि कितना  लेने से उसकी आवश्यकता पूर्ण होगी। जितनी रकम खर्च करनी चाहिए वह  उतनी ही करता है।’

‘भारत में सैतालिस हजार गावोंमें साप्ताहिक बाजार भरता है। इनका कुल टर्नओव्हर दुनिया के सबसे बड़े माल्स की शृंखला ‘वालमार्ट’ से अधिक है। याने अवसर हैं । फिर हम उन्हें क्यों नहीं भुनाते ?’

उदाहरण के तौर पर देखिए। भारत में प्रति वर्ष ढाई सौ करोड़ रुपये दांतोंके स्वास्थ्य सम्बन्धी विज्ञापनोंपर अर्थात डेंटल केयर ऐड्स पर खर्च होते हैं। लेकिन, उनके ग्राहक ये नहीं जानते कि  वैज्ञानिक रूपसे हर दिन कितना समय दाँतोंको ब्रश करना है। यह इसलिए क्योंकि, विज्ञापनोंमें ऐसी आवश्यक जानकारी नहीं होती। विज्ञापनोंमें फ़िल्मी स्टार्स और चकाचौंध होती है बस ! यदि हम उस कंपनी को बताएं कि  जाकर ये आवश्यक जानकारियां हम देंगे और हम इस तरह ग्राहकोंको उपयोगी जानकारी शेयर करें, तो शून्य पूर्णांक शून्य शून्य एक प्रतिशत भी सफल रहते हैं तो हम २५ लाख का व्यवसाय करलेंगे। ऐसे हज़ारो ब्रांड्स और उत्पादन गॉंवोंमें जाकर सफल बन सकते हैं। क्योंकि, शहरी बाजार अर्थात अर्बन मार्किट अब पूर्ण अथवा सैच्युरेटेड  (सम्पृक्त) हो चुके हैं।  सबको ग्रामीण बाजार में पहुँचना है।   आज के युवाओंमें  क्षमता है।  उन्हें इस  सम्भावना को साकार करना होगा। लेकिन, उनमें आत्मविश्वास की कमी है।  आत्मविश्वास की कमी और अति आत्मविश्वास ये दोनों बड़ी समस्याएं हो सकती हैं।’

इनोवेशन और कंसिस्टेंसी ।

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‘आज एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में ट्रैक्टर चालिस प्रतिशत कृषि कामोंके लिए और साठ प्रति शत इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में कार्यरत दिखते हैं। विकास कार्य तेज़ी से बढ़ रहे हैं। वहां पंचायती राज के तहत सत्ता का विकेंद्रीकरण भी हो चुका है। अब हमारे गाँवोंमें काफी अवसर हैं, हमें उनका लाभ उठाना सीखना होगा।  टेक्नोलॉजी आपके साथ है।  अब आपको अमरीका या यूरोप में दफ्तर बनाने की आवश्यकता नहीं है।  एक अच्छा इंटरनेट कनेक्शन और एक लैपटॉप पर्याप्त हैं।  आपके पास केवल दो चीजें चाहिए।  एक कोई न कोई इनोवेशन, अभिनव खोज और दूसरी आवश्यक बात है संततता, अर्थात सातत्य या कंसिस्टेंसी। यदि आजके युवा अपने संततता  सदा के लिए जोड़ लेते हैं तो इस से बेहतर कुछ न होगा।’

‘भविष्य के आनेवाले ट्रेंड्स और टेक्नोलॉजीज को देखते हुए काम किजिए।  यह सोच गलत है, कि आप  केवल शहरोंमें रहकर तरक्की कर सकते है।  आप जहां  भी हों आगे  बढ़ सकते हैं। ग्रामीण भारत में अवसरोंकी कमी नहीं।  दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं। भारत में अनुमानित   ६ लाख ४९ हजार गाँव  हैं।  छह हजार तहसीलें हैं और लगभग सात सौं सात जिले हैं। अवसर यहां हैं। इस  ग्रामीण क्षेत्र का पैंसठ  प्रतिशत ग्राहक अब दुनिया की नजरोंमें मध्यमवर्गीय याने  मिड्ल क्लास हो चुका है। जो भी मध्यम वर्ग से होते हैं वे विश्व के अधिकतर उत्पादों और सेवाओंकेलिए ग्राहक होते हैं। इसका विस्मरण ना होने दें।  डिलीवरी और कंसिस्टेंसी को सदैव फॉलो याने अनुसरण करें।’

‘जल्द ही देश का हर व्यक्ति शिक्षित होगा और देश  के हर व्यक्ति के पास एंड्राइड फोन होगा।  अर्थात वह विश्व से कनेक्टेड होगा।  तीसरी बात जाती या धर्म के आगे जाकर हर युवा प्रेरणा से भरा होगा। आपको स्वयं के बारेमें गलतफहमियां दूर करनी हैं।  आपको यह नहीं भूलना है, कि  हाथी अपने वजन के जितना भार उठा सकता है।  लेकिन, नन्ही सी  चींटी उसके वजन से बत्तीस गुना अधिक भार उठा सकती है।  आपको अपनी क्षमता पहचाननी है।  हर युवा ऐसे सोचेगा और कृति करेगा तो शीघ्र ही अपने देश का हर व्यक्ति गर्व से कहेगा, कि  वह एक वाकई महान देश का निवासी है।’

अगली पहल ‘B Hub’

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प्रदीप जी की संस्था Rural Relations की अगली पहल है B Hub। यहां B फॉर भारत है। वे कहते हैं,

‘ग्रामीण भारत में ढाई लाख सेकंडरी स्कूल हैं और एक लाख अस्सी हजार पब्लिक हेल्थ सेंटर्स और सब सेंटर्स हैं । ग्रामीण भारत में आज एक लाख उनचालिस हजार डाक घर हैं। यहां उपलब्ध सुविधाओं का लाभ लेकर उन्हें एंपावर करने का प्रयास करेंगे । यहां ओपन फिटनेस सेंटर, गो डाउन, कोल्ड स्टोरेज स्थापित किए जा सकते हैं। उनकी स्थापना हो, स्थानीय लोगोंको इन सुविधाओं का लाभ मिले, युवाओंको काम मिले और इन सुविधाओं का मेंटेनेंस भी हो।’

(Pics : ‘Rural Relations’)

संपर्क 

वेबसाईट : ruralrelations.com

ई मेल : rural@ruralrelations.com

WhatsApp : +91 97655 50069

(all images: Ruralrelations.com)

Editor India Input

I am a senior journalist. Have reported and edited in print, tv & web, in English, Hindi & Marathi for almost three decades. Passionate about extraordinary positive works by people like you and me.

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