#स्वतंत्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: एक दोहरा उत्सव !
स्वतंत्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का एक ही दिन आना, हमें स्वतंत्रता के महत्व का स्मरण कराता है।

#स्वतंत्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : एक दोहरा उत्सव ! मित्रों, इस वर्ष हमारे देश का स्वतंत्रता दिवस और भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव एक ही दिन मनाया जा रहा है। यह एक अद्भुत संयोग है, जो हमें स्वतंत्रता के महत्व को बार-बार याद दिलाता है।
जैसा कि, लेखिका अरुंधति दीक्षित ने http://indiainput.com से साझा किया है..
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था, जो गुलामी का प्रतीक है। जन्म से ही उनका स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था।
माता-पिता से बिछड़ना भी सही, लेकिन मृत्यु की तलवार तले जीने की गुलामी नहीं, इसी सोच के साथ देवकी के रुदन की परवाह न करते हुए वासुदेव ने उन्हें नंद बाबा के आंगन में पहुंचाया, जहाँ उन्हें स्वतंत्रता मिली।
जिस तरह सूर्य की किरणें आते ही दुनिया रोशन हो जाती है, उसी तरह श्रीकृष्ण ने गोपियों को, जो अपने छोटे से संसार में लीन थीं, भवबाधाओं से मुक्त करने वाला, ज्ञान का वह प्रकाश दिया, जो उन्हें स्वतंत्रता का अनुभव करा सका।
स्वतंत्रता और श्रीकृष्ण: एक शाश्वत संदेश !
उन्होंने कंस, शिशुपाल, जरासंध, जयद्रथ जैसे अनेकों अत्याचारी शासकों को पराजित किया और यहाँ तक कि भीष्म और द्रोण जैसे अनेकों पूजनीय योद्धाओं को भी मोक्ष का मार्ग सुलभ कराकर, लोगों को बुरे शासन से मुक्त किया, जिससे भारत वासी खुलकर सांस ले सकें।
उन्होंने कपटी कौरवों की राजनीति में फंसे वनवासी पांडवों को वनवास से मुक्त कराया और स्वतंत्रता एवं धर्म का, यानी जनहित का राज्य स्थापित किया। उन्होंने दुर्योधन के कुटिल, अन्यायपूर्ण और अहितकारी शासन का अंत किया, जो सिर्फ चापलूसी और अनुचित व्यवहार को ही प्रतिष्ठा देता था।
यह जानते हुए भी, कि यह गृहयुद्ध कितने लोगों की जान लेगा, उन्होंने अहितकारी आचरण को यूँ ही चलने नहीं दिया, बल्कि पूरी शक्ति से उसका प्रतिकार किया और धर्म पर आधारित एक नई पीढ़ी के हाथों में समाज की बागडोर सौंपने के लिए युद्ध भी कराया।
उन्होंने नरकासुर की कैद से सोलह हजार नारियों को स्वतंत्रता का दिन दिखाया।
यहाँ तक कि उन्होंने पूजनीय ऋषियों का अपमान करने वाले अपने ही बच्चों और धन के मद में चूर यादवों को भी दया नहीं दिखाई और उन्हें खुद ही विनाश के कगार पर पहुंचाया। उन्होंने पृथ्वी को उनके अत्याचारों से मुक्त किया और स्वतंत्रता का खुला श्वास लेने का मौका दिया।
इतना ही नहीं, उन्होंने गांधारी के श्राप को भी अत्यंत विनम्रता से स्वीकार किया और उसे अपने इहलोक की यात्रा का अंत मान लिया। अंत में, उन्होंने उद्धव को भी अंतिम उपदेश देकर मुक्ति का मार्ग दिखाया।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन और हमारा स्वतंत्रता दिवस एक ही दिन आने से, हमें प्रजा के हितकारी स्वतंत्रता के महत्व को बार-बार समझने का मौका मिल रहा है। मित्रों, स्वतंत्रता बाकी किसी भी धन से अत्यंत महान धन है।
इसकी तुलना किसी भी वस्तु या भाव से नहीं की जा सकती। देश होगा तो धर्म होगा, धर्म होगा तो हमारा हित होगा और हित होगा तो ही हमारी प्रगति होगी। अतः स्वतंत्रता का सौदा किसी के साथ नहीं! स्वतंत्रता दिवस अमर रहे!
आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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